शुक्रवार, 9 सितंबर 2016

321-वशिष्ठ जी की आज्ञा पाकर सखियाँ सीताजी को सजाकर मंडप में लाती हैं ।



रामचरितमानस से ...बालकांड

प्रसंग: वशिष्ठ जी की आज्ञा पाकर सखियाँ सीताजी को सजाकर
      मंडप में लाती हैं ।

श्री रामचन्द्रजी के मुख रूपी चन्द्रमा की छबि को सभी के सुंदर नेत्र रूपी चकोर आदरपूर्वक पान कर रहे हैं, प्रेम और आनंद बहुत है । समय देखकर वशिष्ठजी ने शतानंदजी को आदरपूर्वक बुलाया। वे सुनकर आदर के साथ आए। वशिष्ठजी ने कहा- अब जाकर राजकुमारी को शीघ्र ले आइए। मुनि की आज्ञा पाकर वे प्रसन्न होकर चले । बुद्धिमती रानी पुरोहित की वाणी सुनकर सखियों समेत बड़ी प्रसन्न हुईं। ब्राह्मणों की स्त्रियों और कुल की बूढ़ी स्त्रियों को बुलाकर उन्होंने कुलरीति करके सुंदर मंगल गीत गाए ।
श्रेष्ठ देवांगनाएँ, जो सुंदर मनुष्य-स्त्रियों के वेश में हैं, सभी स्वभाव से ही सुंदरी और श्यामा हैं। उनको देखकर रनिवास की स्त्रियाँ सुख पाती हैं और बिना पहिचान के ही वे सबको प्राणों से भी प्यारी हो रही हैं ।
उन्हें पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के समान जानकर रानी बार-बार उनका सम्मान करती हैं। रनिवास की स्त्रियाँ और सखियाँ सीताजी का श्रृंगार करके, मंडली बनाकर, प्रसन्न होकर उन्हें मंडप में लिवा चलीं ।

दो0-रामचंद्र मुख चंद्र छबि लोचन चारु चकोर।
करत पान सादर सकल प्रेमु प्रमोदु न थोर।।321।।
समउ बिलोकि बसिष्ठ बोलाए। सादर सतानंदु सुनि आए।।
बेगि कुअँरि अब आनहु जाई। चले मुदित मुनि आयसु पाई।।
रानी सुनि उपरोहित बानी। प्रमुदित सखिन्ह समेत सयानी।।
बिप्र बधू कुलबृद्ध बोलाईं। करि कुल रीति सुमंगल गाईं।।
नारि बेष जे सुर बर बामा। सकल सुभायँ सुंदरी स्यामा।।
तिन्हहि देखि सुखु पावहिं नारीं। बिनु पहिचानि प्रानहु ते प्यारीं।।
बार बार सनमानहिं रानी। उमा रमा सारद सम जानी।।
सीय सँवारि समाजु बनाई। मुदित मंडपहिं चलीं लवाई।।
छं0-चलि ल्याइ सीतहि सखीं सादर सजि सुमंगल भामिनीं।
नवसप्त साजें सुंदरी सब मत्त कुंजर गामिनीं।।
कल गान सुनि मुनि ध्यान त्यागहिं काम कोकिल लाजहीं।
मंजीर नूपुर कलित कंकन ताल गती बर बाजहीं।।

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