रामचरितमानस
से ...बालकांड
प्रसंग: सुमंत्र जी दो रथ सजा कर लाते हैं ।
सबके हृदय में अपार हर्ष है और
शरीर पुलकित है। सबकी एक ही लालसा लगी है कि हम श्री राम-लक्ष्मण
दोनों भाइयों को नेत्र भरकर कब देखेंगे ।
हाथी गरज रहे हैं, उनके घंटों की भीषण ध्वनि हो रही है। चारों ओर रथों
की घरघराहट और घोड़ों की हिनहिनाहट हो रही है। बादलों का निरादर करते हुए नगाड़े
घोर शब्द कर रहे हैं। किसी को अपनी-पराई कोई बात कानों से सुनाई नहीं देती ।
राजा दशरथ के दरवाजे पर इतनी भारी
भीड़ हो रही है कि वहाँ पत्थर फेंका जाए तो वह भी पिसकर धूल हो जाए। अटारियों पर
चढ़ी स्त्रियाँ मंगल थालों में आरती लिए देख रही हैं ।
और नाना प्रकार के मनोहर गीत गा
रही हैं। उनके अत्यन्त आनंद का बखान नहीं हो सकता। तब सुमन्त्रजी ने दो रथ सजाकर
उनमें सूर्य के घोड़ों को भी मात करने वाले घोड़े जोते ।
दोनों सुंदर रथ वे राजा दशरथ के
पास ले आए, जिनकी सुंदरता का वर्णन सरस्वती
से भी नहीं हो सकता। एक रथ पर राजसी सामान सजाया गया और दूसरा तेज का पुंज और
अत्यन्त ही शोभायमान था ।
दो0-सब कें उर निर्भर
हरषु पूरित पुलक सरीर।
कबहिं देखिबे नयन भरि रामु लखनू दोउ बीर।।300।।
गरजहिं गज घंटा धुनि घोरा। रथ रव बाजि हिंस चहु ओरा।।
निदरि घनहि घुर्म्मरहिं निसाना। निज पराइ कछु सुनिअ न काना।।
महा भीर भूपति के द्वारें। रज होइ जाइ पषान पबारें।।
चढ़ी अटारिन्ह देखहिं नारीं। लिँएँ आरती मंगल थारी।।
गावहिं गीत मनोहर नाना। अति आनंदु न जाइ बखाना।।
तब सुमंत्र दुइ स्पंदन साजी। जोते रबि हय निंदक बाजी।।
दोउ रथ रुचिर भूप पहिं आने। नहिं सारद पहिं जाहिं बखाने।।
राज समाजु एक रथ साजा। दूसर तेज पुंज अति भ्राजा।।
कबहिं देखिबे नयन भरि रामु लखनू दोउ बीर।।300।।
गरजहिं गज घंटा धुनि घोरा। रथ रव बाजि हिंस चहु ओरा।।
निदरि घनहि घुर्म्मरहिं निसाना। निज पराइ कछु सुनिअ न काना।।
महा भीर भूपति के द्वारें। रज होइ जाइ पषान पबारें।।
चढ़ी अटारिन्ह देखहिं नारीं। लिँएँ आरती मंगल थारी।।
गावहिं गीत मनोहर नाना। अति आनंदु न जाइ बखाना।।
तब सुमंत्र दुइ स्पंदन साजी। जोते रबि हय निंदक बाजी।।
दोउ रथ रुचिर भूप पहिं आने। नहिं सारद पहिं जाहिं बखाने।।
राज समाजु एक रथ साजा। दूसर तेज पुंज अति भ्राजा।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें