रामचरितमानस
से ...बालकांड
प्रसंग: जानकीजी
और श्री रघुनाथजी का विवाह होगा- यह शुभ समाचार पाकर लोगों ने अपने-अपने घरों को
सजाकर मंगलमय बना लिया।
अयोध्यावासियों
ने
अपने-अपने घरों को सजाकर मंगलमय बना लिया। गलियों को चतुर सम से सींचा और द्वारों
पर सुंदर चौक पुराए। (चंदन, केशर, कस्तूरी और कपूर से बने हुए एक सुगंधित द्रव को
चतुरसम कहते हैं)।
चौपाई :
बिजली की सी कांति वाली
चन्द्रमुखी, हरिन के बच्चे के से नेत्र वाली
और अपने सुंदर रूप से कामदेव की स्त्री रति के अभिमान को छुड़ाने वाली सुहागिनी
स्त्रियाँ सभी सोलहों श्रृंगार सजकर, जहाँ-तहाँ झुंड की झुंड मिलकर,
मनोहर वाणी से मंगल गीत गा रही
हैं, जिनके सुंदर स्वर को सुनकर कोयलें
भी लजा जाती हैं। राजमहल का वर्णन कैसे किया जाए, जहाँ विश्व को विमोहित करने वाला मंडप बनाया गया है ।
अनेकों प्रकार के मनोहर मांगलिक पदार्थ
शोभित हो रहे हैं और बहुत से नगाड़े बज रहे हैं। कहीं भाट विरुदावली (कुलकीर्ति)
का उच्चारण कर रहे हैं और कहीं ब्राह्मण वेदध्वनि कर रहे हैं ।
सुंदरी स्त्रियाँ श्री रामजी और
श्री सीताजी का नाम ले-लेकर मंगलगीत गा रही हैं। उत्साह बहुत है और महल अत्यन्त ही
छोटा पड़ गया है , इससे उसमें न समाकर मानो वह आनंद
चारों ओर उमड़ चला है ।
दो0-मंगलमय निज निज भवन
लोगन्ह रचे बनाइ।
बीथीं सीचीं चतुरसम चौकें चारु पुराइ।।296।।
बीथीं सीचीं चतुरसम चौकें चारु पुराइ।।296।।
जहँ तहँ जूथ जूथ मिलि भामिनि। सजि नव सप्त
सकल दुति दामिनि।।
बिधुबदनीं मृग सावक लोचनि। निज सरुप रति मानु बिमोचनि।।
गावहिं मंगल मंजुल बानीं। सुनिकल रव कलकंठि लजानीं।।
भूप भवन किमि जाइ बखाना। बिस्व बिमोहन रचेउ बिताना।।
मंगल द्रब्य मनोहर नाना। राजत बाजत बिपुल निसाना।।
कतहुँ बिरिद बंदी उच्चरहीं। कतहुँ बेद धुनि भूसुर करहीं।।
गावहिं सुंदरि मंगल गीता। लै लै नामु रामु अरु सीता।।
बहुत उछाहु भवनु अति थोरा। मानहुँ उमगि चला चहु ओरा।।
बिधुबदनीं मृग सावक लोचनि। निज सरुप रति मानु बिमोचनि।।
गावहिं मंगल मंजुल बानीं। सुनिकल रव कलकंठि लजानीं।।
भूप भवन किमि जाइ बखाना। बिस्व बिमोहन रचेउ बिताना।।
मंगल द्रब्य मनोहर नाना। राजत बाजत बिपुल निसाना।।
कतहुँ बिरिद बंदी उच्चरहीं। कतहुँ बेद धुनि भूसुर करहीं।।
गावहिं सुंदरि मंगल गीता। लै लै नामु रामु अरु सीता।।
बहुत उछाहु भवनु अति थोरा। मानहुँ उमगि चला चहु ओरा।।
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