श्रीरामचरितमानस से ...बालकांड
प्रसंग: नीच राजाओं का अनर्गल प्रलाप और प्रतिष्ठावान राजाओं द्वारा उनका प्रत्युत्तर
प्रसंग: नीच राजाओं का अनर्गल प्रलाप और प्रतिष्ठावान राजाओं द्वारा उनका प्रत्युत्तर
गौतमजी
की स्त्री अहल्या की गति का स्मरण करके सीताजी श्री रामजी के चरणों को हाथों से
स्पर्श नहीं कर रही हैं। सीताजी की अलौकिक प्रीति जानकर रघुकुल मणि श्री
रामचन्द्रजी मन में हँसे ।
उस
समय सीताजी को देखकर कुछ राजा लोग ललचा उठे। वे दुष्ट, कुपूत और मूढ़ राजा मन में बहुत तमतमाए।
वे अभागे उठ-उठकर, कवच पहनकर, जहाँ-तहाँ गाल बजाने लगे ।
कोई
कहते हैं, सीता को छीन लो और
दोनों राजकुमारों को पकड़कर बाँध लो। धनुष तोड़ने से ही चाह नहीं पूरी होगी। हमारे
जीते-जी राजकुमारी को कौन ब्याह सकता है? यदि
जनक कुछ सहायता करें, तो
युद्ध में दोनों भाइयों सहित उसे भी जीत लो।
ये
वचन सुनकर साधु राजा बोले- इस राज समाज को देखकर तो लाज भी लजा गई । अरे!
तुम्हारा बल, प्रताप, वीरता, बड़ाई और प्रतिष्ठा तो धनुष के साथ ही
चली गई। वही वीरता थी कि अब कहीं से मिली है?
ऐसी
दुष्ट बुद्धि है, तभी तो विधाता ने
तुम्हारे मुखों पर कालिख लगा दी ।
दो0-गौतम तिय गति सुरति
करि नहिं परसति पग पानि।
मन बिहसे रघुबंसमनि प्रीति अलौकिक जानि।।265।।
तब सिय देखि भूप अभिलाषे। कूर कपूत मूढ़ मन माखे।।
उठि उठि पहिरि सनाह अभागे। जहँ तहँ गाल बजावन लागे।।
लेहु छड़ाइ सीय कह कोऊ। धरि बाँधहु नृप बालक दोऊ।।
तोरें धनुषु चाड़ नहिं सरई। जीवत हमहि कुअँरि को बरई।।
जौं बिदेहु कछु करै सहाई। जीतहु समर सहित दोउ भाई।।
साधु भूप बोले सुनि बानी। राजसमाजहि लाज लजानी।।
बलु प्रतापु बीरता बड़ाई। नाक पिनाकहि संग सिधाई।।
सोइ सूरता कि अब कहुँ पाई। असि बुधि तौ बिधि मुहँ मसि लाई।।
मन बिहसे रघुबंसमनि प्रीति अलौकिक जानि।।265।।
तब सिय देखि भूप अभिलाषे। कूर कपूत मूढ़ मन माखे।।
उठि उठि पहिरि सनाह अभागे। जहँ तहँ गाल बजावन लागे।।
लेहु छड़ाइ सीय कह कोऊ। धरि बाँधहु नृप बालक दोऊ।।
तोरें धनुषु चाड़ नहिं सरई। जीवत हमहि कुअँरि को बरई।।
जौं बिदेहु कछु करै सहाई। जीतहु समर सहित दोउ भाई।।
साधु भूप बोले सुनि बानी। राजसमाजहि लाज लजानी।।
बलु प्रतापु बीरता बड़ाई। नाक पिनाकहि संग सिधाई।।
सोइ सूरता कि अब कहुँ पाई। असि बुधि तौ बिधि मुहँ मसि लाई।।
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