गुरुवार, 8 सितंबर 2016

242-धनुषयज्ञ शाला में श्रीराम –लक्ष्मण की शोभा का वर्णन

श्रीरामचरितमानस से ...बालकांड
प्रसंग:
धनुषयज्ञ शाला में श्रीराम –लक्ष्मण की शोभा का वर्णन

सुंदर साँवले और गोरे शरीर वाले तथा विश्वभर के नेत्रों को चुराने वाले कोसलाधीश के कुमार राज समाज में सुशोभित हो रहे हैं ।दोनों मूर्तियाँ स्वभाव से ही ,बिना किसी बनाव-श्रृंगार के, मन को हरने वाली हैं। करोड़ों कामदेवों की उपमा भी उनके लिए तुच्छ है। उनके सुंदर मुख शरद् के चन्द्रमा को  भी निंदा करने वाले हैं और कमल के समान नेत्र मन को बहुत ही भाते हैं । सुंदर चितवन कामदेव के भी मन को हरने वाली है। वह हृदय को बहुत ही प्यारी लगती है, पर उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। सुंदर गाल हैं, कानों में चंचल झूमते हुए कुंडल हैं। ठोड़ और अधर सुंदर हैं, कोमल वाणी है । हँसी, चन्द्रमा की किरणों का तिरस्कार करने वाली है। भौंहें टेढ़ी और नासिका मनोहर है। ऊँचे चौड़े ललाट पर तिलक झलक रहे हैं काले घुँघराले बालों को देखकर भौंरों की पंक्तियाँ भी लजा जाती हैं । पीली चौकोनी टोपियाँ सिरों पर सुशोभित हैं, जिनके बीच-बीच में फूलों की कलियाँ बनाई हुई हैं। शंख के समान सुंदर गले में मनोहर तीन रेखाएँ हैं, जो मानो तीनों लोकों की सुंदरता की सीमा को बता रही हैं ।
* राजत राज समाज महुँ कोसलराज किसोर।
सुंदर स्यामल गौर तन बिस्व बिलोचन चोर॥242
चौपाई :         
* सहज मनोहर मूरति दोऊ। कोटि काम उपमा लघु सोऊ॥
सरद चंद निंदक मुख नीके। नीरज नयन भावते जी के॥1
चितवनि चारु मार मनु हरनी। भावति हृदय जाति नहिं बरनी॥
कल कपोल श्रुति कुंडल लोला। चिबुक अधर सुंदर मृदु बोला॥2
* कुमुदबंधु कर निंदक हाँसा। भृकुटी बिकट मनोहर नासा॥
भाल बिसाल तिलक झलकाहीं। कच बिलोकि अलि अवलि लजाहीं॥3
* पीत चौतनीं सिरन्हि सुहाईं। कुसुम कलीं बिच बीच बनाईं॥
रेखें रुचिर कंबु कल गीवाँ। जनु त्रिभुवन सुषमा की सीवाँ॥4




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