श्रीरामचरितमानस से ...बालकांड
प्रसंग:
लक्ष्मण –परशुराम
संवाद प्रसंग:
लक्ष्मणजी
ने परशुराम मुनि से कहा -
शूरवीर तो युद्ध में शूरवीरता का कार्य करते हैं, कहकर
अपने को नहीं जनाते। शत्रु को युद्ध में उपस्थित पाकर कायर ही अपने प्रताप की डींग
मारा करते हैं । आप तो मानो काल को हाँक लगाकर बार-बार उसे मेरे लिए बुलाते हैं।
लक्ष्मणजी के कठोर वचन सुनते ही परशुरामजी ने
अपने भयानक फरसे को सुधारकर हाथ में ले लिया और बोले- अब लोग मुझे दोष न दें। यह
कडुआ बोलने वाला बालक मारे जाने के ही योग्य है। इसे बालक देखकर मैंने बहुत बचाया,
पर अब यह सचमुच मरने को ही आ गया है ।
विश्वामित्रजी ने कहा- अपराध क्षमा कीजिए।
बालकों के दोष और गुण को साधु लोग नहीं गिनते।
परशुरामजी बोले- तीखी धार का कुठार, मैं दयारहित और क्रोधी और यह गुरुद्रोही और अपराधी मेरे सामने उत्तर दे
रहा है। इतने पर भी मैं इसे बिना मारे छोड़ रहा हूँ, सो हे
विश्वामित्र! केवल तुम्हारे शील से। नहीं तो इसे इस कठोर कुठार से काटकर थोड़े ही
परिश्रम से गुरु से उऋण हो जाता ।
दो0-सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।274।।
तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।।
सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
अब जनि देइ दोसु मोहि लोगू। कटुबादी बालकु बधजोगू।।
बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब यहु मरनिहार भा साँचा।।
कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगें अपराधी गुरुद्रोही।।
उतर देत छोड़उँ बिनु मारें। केवल कौसिक सील तुम्हारें।।
न त एहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।
बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।274।।
तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।।
सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
अब जनि देइ दोसु मोहि लोगू। कटुबादी बालकु बधजोगू।।
बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब यहु मरनिहार भा साँचा।।
कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगें अपराधी गुरुद्रोही।।
उतर देत छोड़उँ बिनु मारें। केवल कौसिक सील तुम्हारें।।
न त एहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।
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