श्रीरामचरितमानस से ...बालकांड
प्रसंग: लक्ष्मण –परशुराम संवाद
प्रसंग: लक्ष्मण –परशुराम संवाद
फिर परशुराम जी ने लक्ष्मण से
कहा- तू अपने माता-पिता को सोच के वश न कर। मेरा फरसा बड़ा भयानक है,
यह गर्भों के बच्चों का भी नाश करने वाला है।
तब लक्ष्मणजी हँसकर कोमल वाणी से बोले- अहो,
मुनीश्वर तो अपने को बड़ा भारी योद्धा समझते हैं। बार-बार मुझे
कुल्हाड़ी दिखाते हैं। फूँक से पहाड़ उड़ाना चाहते हैं ।
यहाँ कोई कुम्हड़े की बतिया
नहीं है, जो तर्जनी अँगुली को देखते
ही मर जाती हैं। कुठार और धनुष-बाण देखकर ही मैंने कुछ अभिमान सहित कहा था ।
भृगुवंशी समझकर और यज्ञोपवीत
देखकर तो जो कुछ आप कहते हैं, उसे मैं क्रोध
को रोककर सह लेता हूँ। देवता, ब्राह्मण, भगवान के भक्त और गो- इन पर हमारे कुल में वीरता नहीं दिखाई जाती। क्योंकि
इन्हें मारने से पाप लगता है और इनसे हार जाने पर अपकीर्ति होती है, इसलिए आप मारें तो भी आपके पैर ही पड़ना चाहिए। आपका एक-एक वचन ही करोड़ों
वज्रों के समान है। धनुष-बाण और कुठार तो आप व्यर्थ ही धारण करते हैं ।
दो0-मातु पितहि जनि
सोचबस करसि महीसकिसोर।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।।272।।
बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महा भटमानी।।
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन फूँकि पहारू।।
इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं।।
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहउँ रिस रोकी।।
सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरें कुल इन्ह पर न सुराई।।
बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहूँ पा परिअ तुम्हारें।।
कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। ब्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।।272।।
बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महा भटमानी।।
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन फूँकि पहारू।।
इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं।।
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहउँ रिस रोकी।।
सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरें कुल इन्ह पर न सुराई।।
बधें पापु अपकीरति हारें। मारतहूँ पा परिअ तुम्हारें।।
कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। ब्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
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