रामचरितमानस
से ...बालकांड
प्रसंग:
जनकपुरवासी राजा दशरथ और राजा जनक की सुकीर्ति की चर्चा करते हैं ।
जहाँ-तहाँ जनकपुरवासी स्त्री-पुरुषों के समूह इकट्ठे हो-होकर यही
कह रहे हैं कि श्री रामचन्द्रजी
और सीताजी सुंदरता की सीमा हैं और दोनों राजा पुण्य की सीमा हैं। जनकजी के पुण्य की
मूर्ति जानकीजी हैं और दशरथजी के सुकृत देह धारण किए हुए श्री रामजी हैं। इन दोनों
राजाओं के समान किसी ने शिवजी की आराधना नहीं की और न इनके समान किसी ने फल ही पाए
। इनके समान जगत में न कोई हुआ, न कहीं है, न होने का ही है।
हम सब भी सम्पूर्ण पुण्यों की राशि हैं, जो जगत में जन्म लेकर जनकपुर के
निवासी हुए,और जिन्होंने
जानकीजी और श्री रामचन्द्रजी की छबि देखी है। हमारे सरीखा विशेष पुण्यात्मा कौन
होगा! और अब हम श्री रघुनाथजी का विवाह देखेंगे और भलीभाँति नेत्रों का लाभ लेंगे ।
कोयल के समान मधुर बोलने वाली स्त्रियाँ आपस में कहती हैं कि हे
सुंदर नेत्रों वाली! इस विवाह में बड़ा लाभ है। बड़े भाग्य से विधाता ने सब बात
बना दी है, ये दोनों भाई हमारे
नेत्रों के अतिथि हुआ करेंगे ।
दो0-रामु सीय सोभा अवधि
सुकृत अवधि दोउ राज।
जहँ जहँ पुरजन कहहिं अस मिलि नर नारि समाज।।।309।।
जनक सुकृत मूरति बैदेही। दसरथ सुकृत रामु धरें देही।।
इन्ह सम काँहु न सिव अवराधे। काहिँ न इन्ह समान फल लाधे।।
इन्ह सम कोउ न भयउ जग माहीं। है नहिं कतहूँ होनेउ नाहीं।।
हम सब सकल सुकृत कै रासी। भए जग जनमि जनकपुर बासी।।
जिन्ह जानकी राम छबि देखी। को सुकृती हम सरिस बिसेषी।।
पुनि देखब रघुबीर बिआहू। लेब भली बिधि लोचन लाहू।।
कहहिं परसपर कोकिलबयनीं। एहि बिआहँ बड़ लाभु सुनयनीं।।
बड़ें भाग बिधि बात बनाई। नयन अतिथि होइहहिं दोउ भाई।।
जहँ जहँ पुरजन कहहिं अस मिलि नर नारि समाज।।।309।।
जनक सुकृत मूरति बैदेही। दसरथ सुकृत रामु धरें देही।।
इन्ह सम काँहु न सिव अवराधे। काहिँ न इन्ह समान फल लाधे।।
इन्ह सम कोउ न भयउ जग माहीं। है नहिं कतहूँ होनेउ नाहीं।।
हम सब सकल सुकृत कै रासी। भए जग जनमि जनकपुर बासी।।
जिन्ह जानकी राम छबि देखी। को सुकृती हम सरिस बिसेषी।।
पुनि देखब रघुबीर बिआहू। लेब भली बिधि लोचन लाहू।।
कहहिं परसपर कोकिलबयनीं। एहि बिआहँ बड़ लाभु सुनयनीं।।
बड़ें भाग बिधि बात बनाई। नयन अतिथि होइहहिं दोउ भाई।।
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