गुरुवार, 8 सितंबर 2016

293-गुरु वशिष्ठ पत्रिका सुन कर अत्यधिक प्रसन्न हुए...

रामचरितमानस से ...बालकांड
     प्रसंग:
गुरु वशिष्ठ पत्रिका सुन कर अत्यधिक प्रसन्न हुए और बारात सजाने की आज्ञा दी ।
जब सभा सहित राजा प्रेम में मग्न हो गए और दूतों को निछावर देने लगे। तब  दूत अपने हाथों से कान मूँदने लगे कि यह नीति विरुद्ध है । दूतों का धर्मयुक्त बर्ताव देखकर सभी ने सुख माना । फिर राजा ने उठकर वशिष्ठजी के पास जाकर उन्हें पत्रिका दी और आदरपूर्वक दूतों को बुलाकर सारी कथा गुरुजी को सुना दी ।
सब समाचार सुनकर और अत्यन्त सुख पाकर गुरु बोले- पुण्यात्मा पुरुष के लिए पृथ्वी सुखों से छाई हुई है। जैसे नदियाँ समुद्र में जाती हैं, यद्यपि समुद्र को नदी की कामना नहीं होती ।
वैसे ही सुख और सम्पत्ति बिना ही बुलाए स्वाभाविक ही धर्मात्मा पुरुष के पास जाती है। तुम जैसे गुरु, ब्राह्मण, गाय और देवता की सेवा करने वाले हो, वैसी ही पवित्र कौसल्यादेवी भी हैं ।
तुम्हारे समान पुण्यात्मा जगत में न कोई हुआ, न है और न होने का ही है। हे राजन्‌! तुमसे अधिक पुण्य और किसका होगा, जिसके राम सरीखे पुत्र हैं ।
और जिसके चारों बालक वीर, विनम्र, धर्म का व्रत धारण करने वाले और गुणों के सुंदर समुद्र हैं। तुम्हारे लिए सभी कालों में कल्याण है। अतएव डंका बजवाकर बारात सजाओ ।

दो0-तब उठि भूप बसिष्ठ कहुँ दीन्हि पत्रिका जाइ।
कथा सुनाई गुरहि सब सादर दूत बोलाइ।।293।।
सुनि बोले गुर अति सुखु पाई। पुन्य पुरुष कहुँ महि सुख छाई।।
जिमि सरिता सागर महुँ जाहीं। जद्यपि ताहि कामना नाहीं।।
तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएँ। धरमसील पहिं जाहिं सुभाएँ।।
तुम्ह गुर बिप्र धेनु सुर सेबी। तसि पुनीत कौसल्या देबी।।
सुकृती तुम्ह समान जग माहीं। भयउ न है कोउ होनेउ नाहीं।।
तुम्ह ते अधिक पुन्य बड़ काकें। राजन राम सरिस सुत जाकें।।
बीर बिनीत धरम ब्रत धारी। गुन सागर बर बालक चारी।।
तुम्ह कहुँ सर्ब काल कल्याना। सजहु बरात बजाइ निसाना।।

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