रामचरितमानस
से ...बालकांड
प्रसंग: तुलसीदासजी कहते हैं कि बारात
ऐसी बनी है कि उसका वर्णन करते नहीं बनता।
सुंदर राजकुमार मृदंग और नगाड़े
के शब्द सुनकर घोड़ों को उन्हीं के अनुसार इस प्रकार नचा रहे हैं कि वे ताल के
बंधान से जरा भी डिगते नहीं हैं। चतुर नट चकित होकर यह देख रहे हैं ।
बारात ऐसी बनी है कि उसका वर्णन
करते नहीं बनता। सुंदर शुभदायक शकुन हो रहे हैं। नीलकंठ पक्षी बाईं ओर चारा ले रहा
है, मानो सम्पूर्ण मंगलों की सूचना दे
रहा हो ।
दाहिनी ओर कौआ सुंदर खेत में शोभा
पा रहा है। नेवले का दर्शन भी सब किसी ने पाया। तीनों प्रकार की शीतल, मंद, सुगंधित हवा अनुकूल दिशा में चल
रही है। सुहागिनी स्त्रियाँ भरे हुए घड़े और गोद में बालक लिए आ रही हैं ।
लोमड़ी बार-बार दिखाई दे जाती है।
गायें सामने खड़ी बछड़ों को दूध पिलाती हैं। हरिनों की टोली बाईं ओर से घूमकर
दाहिनी ओर को आई, मानो सभी मंगलों का समूह दिखाई
दिया ।
क्षेमकरी (सफेद सिरवाली चील)
विशेष रूप से क्षेम (कल्याण) कह रही है। श्यामा बाईं ओर सुंदर पेड़ पर दिखाई पड़ी।
दही, मछली और दो विद्वान ब्राह्मण हाथ
में पुस्तक लिए हुए सामने आए ।
दो0-तुरग नचावहिं कुँअर
बर अकनि मृदंग निसान।।
नागर नट चितवहिं चकित डगहिं न ताल बँधान।।302।।
बनइ न बरनत बनी बराता। होहिं सगुन सुंदर सुभदाता।।
चारा चाषु बाम दिसि लेई। मनहुँ सकल मंगल कहि देई।।
दाहिन काग सुखेत सुहावा। नकुल दरसु सब काहूँ पावा।।
सानुकूल बह त्रिबिध बयारी। सघट सवाल आव बर नारी।।
लोवा फिरि फिरि दरसु देखावा। सुरभी सनमुख सिसुहि पिआवा।।
मृगमाला फिरि दाहिनि आई। मंगल गन जनु दीन्हि देखाई।।
छेमकरी कह छेम बिसेषी। स्यामा बाम सुतरु पर देखी।।
सनमुख आयउ दधि अरु मीना। कर पुस्तक दुइ बिप्र प्रबीना।।
नागर नट चितवहिं चकित डगहिं न ताल बँधान।।302।।
बनइ न बरनत बनी बराता। होहिं सगुन सुंदर सुभदाता।।
चारा चाषु बाम दिसि लेई। मनहुँ सकल मंगल कहि देई।।
दाहिन काग सुखेत सुहावा। नकुल दरसु सब काहूँ पावा।।
सानुकूल बह त्रिबिध बयारी। सघट सवाल आव बर नारी।।
लोवा फिरि फिरि दरसु देखावा। सुरभी सनमुख सिसुहि पिआवा।।
मृगमाला फिरि दाहिनि आई। मंगल गन जनु दीन्हि देखाई।।
छेमकरी कह छेम बिसेषी। स्यामा बाम सुतरु पर देखी।।
सनमुख आयउ दधि अरु मीना। कर पुस्तक दुइ बिप्र प्रबीना।।
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