श्रीरामचरितमानस से ...बालकांड
प्रसंग: श्री रामचन्द्रजी का धनुष के समीप आना और लक्ष्मण जी का शेष वराह आदि को पृथ्वी थामे रहने की आज्ञा देना ।
प्रसंग: श्री रामचन्द्रजी का धनुष के समीप आना और लक्ष्मण जी का शेष वराह आदि को पृथ्वी थामे रहने की आज्ञा देना ।
जब लक्ष्मणजी ने देखा कि रघुकुल मणि श्री
रामचन्द्रजी ने शिवजी के धनुष की ओर ताका है, तो वे शरीर से पुलकित
हो ब्रह्माण्ड को चरणों से दबाकर निम्नलिखित वचन बोले-
हे दिग्गजो! हे
कच्छप! हे शेष! हे वाराह! धीरज धरकर पृथ्वी को थामे रहो,
जिससे
यह हिलने न पावे। श्री रामचन्द्रजी शिवजी के धनुष को तोड़ना चाहते हैं। मेरी आज्ञा
सुनकर सब सावधान हो जाओ ।
श्री रामचन्द्रजी जब
धनुष के समीप आए, तब सब स्त्री-पुरुषों ने देवताओं और
पुण्यों को मनाया। सबका संदेह और अज्ञान, नीच राजाओं का अभिमान,
परशुरामजी के गर्व की
गुरुता, देवता और श्रेष्ठ मुनियों की कातरता
(भय), सीताजी का सोच, जनक का पश्चाताप और रानियों के दारुण
दुःख का दावानल, ये सब शिवजी के धनुष रूपी बड़े जहाज को पाकर,
समाज
बनाकर उस पर जा चढ़े। ये श्री रामचन्द्रजी की भुजाओं के बल रूपी अपार समुद्र के
पार जाना चाहते हैं, परन्तु कोई केवट नहीं है ।
दो0-लखन लखेउ रघुबंसमनि ताकेउ हर कोदंडु।
पुलकि गात बोले बचन चरन चापि ब्रह्मांडु।।259।।
दिसकुंजरहु कमठ अहि कोला। धरहु धरनि धरि धीर न डोला।।
रामु चहहिं संकर धनु तोरा। होहु सजग सुनि आयसु मोरा।।
चाप सपीप रामु जब आए। नर नारिन्ह सुर सुकृत मनाए।।
सब कर संसउ अरु अग्यानू। मंद महीपन्ह कर अभिमानू।।
भृगुपति केरि गरब गरुआई। सुर मुनिबरन्ह केरि कदराई।।
सिय कर सोचु जनक पछितावा। रानिन्ह कर दारुन दुख दावा।।
संभुचाप बड बोहितु पाई। चढे जाइ सब संगु बनाई।।
राम बाहुबल सिंधु अपारू। चहत पारु नहि कोउ कड़हारू।।
पुलकि गात बोले बचन चरन चापि ब्रह्मांडु।।259।।
दिसकुंजरहु कमठ अहि कोला। धरहु धरनि धरि धीर न डोला।।
रामु चहहिं संकर धनु तोरा। होहु सजग सुनि आयसु मोरा।।
चाप सपीप रामु जब आए। नर नारिन्ह सुर सुकृत मनाए।।
सब कर संसउ अरु अग्यानू। मंद महीपन्ह कर अभिमानू।।
भृगुपति केरि गरब गरुआई। सुर मुनिबरन्ह केरि कदराई।।
सिय कर सोचु जनक पछितावा। रानिन्ह कर दारुन दुख दावा।।
संभुचाप बड बोहितु पाई। चढे जाइ सब संगु बनाई।।
राम बाहुबल सिंधु अपारू। चहत पारु नहि कोउ कड़हारू।।
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