रामचरितमानस
से ...बालकांड
प्रसंग:
भरतजी पूछते हैं- पिताजी! चिट्ठी कहाँ से आई है?प्रसंग:
भरतजी बहुत प्रेम से सकुचाते हुए पूछते हैं-
पिताजी! चिट्ठी कहाँ से आई है? हमारे प्राणों से प्यारे दोनों
भाई, कहिए सकुशल तो हैं और वे किस देश
में हैं? स्नेह से सने ये वचन सुनकर राजा ने फिर से चिट्ठी पढ़ी
।
चिट्ठी सुनकर दोनों भाई पुलकित हो
गए। स्नेह इतना अधिक हो गया कि वह शरीर में समाता नहीं। भरतजी का पवित्र प्रेम
देखकर सारी सभा ने विशेष सुख पाया ।
तब राजा दूतों को पास बैठाकर मन
को हरने वाले मीठे वचन बाले- भैया! कहो, दोनों बच्चे कुशल से तो हैं? तुमने अपनी आँखों से उन्हें अच्छी तरह देखा है न?
साँवले और गोरे शरीर वाले वे धनुष
और तरकस धारण किए रहते हैं, किशोर अवस्था है, विश्वामित्र मुनि के साथ हैं। तुम उनको पहचानते हो
तो उनका स्वभाव बताओ। राजा प्रेम के विशेष वश होने से बार-बार इस प्रकार कह रहे
हैं ।
जिस दिन से मुनि उन्हें लिवा ले
गए, तब से आज ही हमने सच्ची खबर पाई
है। कहो तो महाराज जनक ने उन्हें कैसे पहचाना? ये प्रेम भरे वचन सुनकर दूत मुस्कुराए ।
दो0-कुसल प्रानप्रिय
बंधु दोउ अहहिं कहहु केहिं देस।
सुनि सनेह साने बचन बाची बहुरि नरेस।।290।।
सुनि पाती पुलके दोउ भ्राता। अधिक सनेहु समात न गाता।।
प्रीति पुनीत भरत कै देखी। सकल सभाँ सुखु लहेउ बिसेषी।।
तब नृप दूत निकट बैठारे। मधुर मनोहर बचन उचारे।।
भैया कहहु कुसल दोउ बारे। तुम्ह नीकें निज नयन निहारे।।
स्यामल गौर धरें धनु भाथा। बय किसोर कौसिक मुनि साथा।।
पहिचानहु तुम्ह कहहु सुभाऊ। प्रेम बिबस पुनि पुनि कह राऊ।।
जा दिन तें मुनि गए लवाई। तब तें आजु साँचि सुधि पाई।।
कहहु बिदेह कवन बिधि जाने। सुनि प्रिय बचन दूत मुसकाने।।
सुनि सनेह साने बचन बाची बहुरि नरेस।।290।।
सुनि पाती पुलके दोउ भ्राता। अधिक सनेहु समात न गाता।।
प्रीति पुनीत भरत कै देखी। सकल सभाँ सुखु लहेउ बिसेषी।।
तब नृप दूत निकट बैठारे। मधुर मनोहर बचन उचारे।।
भैया कहहु कुसल दोउ बारे। तुम्ह नीकें निज नयन निहारे।।
स्यामल गौर धरें धनु भाथा। बय किसोर कौसिक मुनि साथा।।
पहिचानहु तुम्ह कहहु सुभाऊ। प्रेम बिबस पुनि पुनि कह राऊ।।
जा दिन तें मुनि गए लवाई। तब तें आजु साँचि सुधि पाई।।
कहहु बिदेह कवन बिधि जाने। सुनि प्रिय बचन दूत मुसकाने।।
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