रामचरितमानस
से ...बालकांड
प्रसंग:
जनकजी के दूत अयोध्या में पहुँचे। प्रसंग:
तुलसीदासजी कहते है कि जिस नगर में
साक्षात् लक्ष्मीजी कपट से स्त्री का सुंदर वेष बनाकर बसती हैं, उस पुर की शोभा का वर्णन करने में सरस्वती और शेष भी सकुचाते हैं ।
जनकजी के दूत श्री रामचन्द्रजी की
पवित्र पुरी अयोध्या में पहुँचे। सुंदर नगर देखकर वे हर्षित हुए। राजद्वार पर जाकर
उन्होंने खबर भेजी, राजा दशरथजी ने सुनकर
उन्हें बुला लिया ।
दूतों ने प्रणाम करके चिट्ठी दी।
प्रसन्न होकर राजा ने स्वयं उठकर उसे लिया। चिट्ठी बाँचते समय उनके नेत्रों में प्रेम
और आनंद के आँसू छा गया, शरीर पुलकित हो गया
और छाती भर आई ।
हृदय में राम और लक्ष्मण हैं, हाथ में सुंदर चिट्ठी है, राजा उसे हाथ में लिए ही
रह गए, खट्टी-मीठी कुछ भी कह न सके। फिर धीरज धरकर उन्होंने
पत्रिका पढ़ी। सारी सभा सच्ची बात सुनकर हर्षित हो गई ।
भरतजी अपने मित्रों और भाई शत्रुघ्न
के साथ जहाँ खेलते थे, वहीं समाचार पाकर वे
आ गए। बहुत प्रेम से सकुचाते हुए पूछते हैं- पिताजी! चिट्ठी कहाँ से आई है?
* बसइ नगर जेहिं लच्छि करि कपट नारि बर बेषु।
तेहि पुर कै सोभा कहत सकुचहिं सारद सेषु॥289॥
तेहि पुर कै सोभा कहत सकुचहिं सारद सेषु॥289॥
* पहुँचे दूत राम पुर पावन। हरषे नगर बिलोकि
सुहावन॥
भूप द्वार तिन्ह खबरि जनाई। दसरथ नृप सुनि लिए बोलाई॥1॥
भूप द्वार तिन्ह खबरि जनाई। दसरथ नृप सुनि लिए बोलाई॥1॥
* करि प्रनामु तिन्ह पाती दीन्ही। मुदित महीप
आपु उठि लीन्ही॥
बारि बिलोचन बाँचत पाती। पुलक गात आई भरि छाती॥2॥
बारि बिलोचन बाँचत पाती। पुलक गात आई भरि छाती॥2॥
* रामु लखनु उर कर बर चीठी। रहि गए कहत न खाटी
मीठी॥
पुनि धरि धीर पत्रिका बाँची। हरषी सभा बात सुनि साँची॥3॥
पुनि धरि धीर पत्रिका बाँची। हरषी सभा बात सुनि साँची॥3॥
* खेलत रहे तहाँ सुधि पाई। आए भरतु सहित हित
भाई॥
पूछत अति सनेहँ सकुचाई। तात कहाँ तें पाती आई॥4॥
पूछत अति सनेहँ सकुचाई। तात कहाँ तें पाती आई॥4॥
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