गुरुवार, 8 सितंबर 2016

295-जानकीजी और श्री रघुनाथजी का विवाह होगा- यह शुभ समाचार पाकर लोग प्रेममग्न हो गए।

रामचरितमानस से ...बालकांड
     
प्रसंग: जानकीजी और श्री रघुनाथजी का विवाह होगा- यह शुभ समाचार पाकर लोग प्रेममग्न हो गए।

श्रेष्ठ ब्राह्मण आशीर्वाद देते हुए चले । फिर भिक्षुकों को बुलाकर करोड़ों प्रकार की निछावरें दीं गयी सबों ने कहा -'चक्रवर्ती महाराज दशरथ के चारों पुत्र चिरंजीवी हों' और वे अनेक प्रकार के सुंदर वस्त्र पहन-पहनकर चले। आनंदित होकर नगाड़े वालों ने बड़े जोर से नगाड़ों पर चोट लगाई। सब लोगों ने जब यह समाचार पाया, तब घर-घर बधावे होने लगे ।
चौदहों लोकों में उत्साह भर गया कि जानकीजी और श्री रघुनाथजी का विवाह होगा। यह शुभ समाचार पाकर लोग प्रेममग्न हो गए और रास्ते, घर तथा गलियाँ सजाने लगे ।
यद्यपि अयोध्या सदा सुहावनी है, क्योंकि वह श्री रामजी की मंगलमयी पवित्र पुरी है, तथापि प्रीति पर प्रीति होने से वह सुंदर मंगल रचना से सजाई गई ।
ध्वजा, पताका, परदे और सुंदर चँवरों से सारा बाजा बहुत ही अनूठा छाया हुआ है। सोने के कलश, तोरण, मणियों की झालरें, हलदी, दूब, दही, अक्षत और मालाओं से सजे हैं ।

सो0-जाचक लिए हँकारि दीन्हि निछावरि कोटि बिधि।
चिरु जीवहुँ सुत चारि चक्रबर्ति दसरत्थ के।।295।।
कहत चले पहिरें पट नाना। हरषि हने गहगहे निसाना।।
समाचार सब लोगन्ह पाए। लागे घर घर होने बधाए।।
भुवन चारि दस भरा उछाहू। जनकसुता रघुबीर बिआहू।।
सुनि सुभ कथा लोग अनुरागे। मग गृह गलीं सँवारन लागे।।
जद्यपि अवध सदैव सुहावनि। राम पुरी मंगलमय पावनि।।
तदपि प्रीति कै प्रीति सुहाई। मंगल रचना रची बनाई।।
ध्वज पताक पट चामर चारु। छावा परम बिचित्र बजारू।।
कनक कलस तोरन मनि जाला। हरद दूब दधि अच्छत माला।।

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