श्रीरामचरितमानस से ...बालकांड
प्रसंग: श्री रामचन्द्रजी द्वारा
धनुषभंग किए जाने के बाद हर्ष चारों ओर छा गया । शतानंदजी ने आज्ञा दी और
सीताजी ने श्री रामजी के पास गमन किया।प्रसंग: श्री रामचन्द्रजी द्वारा
धीर बुद्धि वाले, भाट, मागध और सूत लोग कीर्ति का बखान करने
लगे । सब लोग घोड़े, हाथी, धन,
मणि और वस्त्र निछावर कर लगे ।
झाँझ, मृदंग,
शंख, शहनाई, भेरी,
ढोल और सुहावने नगाड़े आदि बहुत प्रकार के सुंदर बाजे बजने लगे । जहाँ-तहाँ युवतियाँ मंगल गीत गाने लगी ।
सखियों सहित रानी
अत्यन्त हर्षित हुईं,
मानो सूखते हुए धान पर पानी पड़ गया हो। जनकजी ने सोच त्याग कर सुख
प्राप्त किया। मानो तैरते-तैरते थके हुए पुरुष ने थाह पा ली हो ।
धनुष टूट जाने पर राजा
लोग ऐसे श्रीहीन हो गए,
जैसे दिन में दीपक की शोभा जाती रहती है। सीताजी का सुख किस प्रकार
वर्णन किया जाए, जैसे चातकी स्वाती का जल पा गई हो ।
श्री रामजी को
लक्ष्मणजी ने इस प्रकार देखा , जैसे चन्द्रमा
को चकोर का बच्चा देख रहा हो। तब शतानंदजी ने आज्ञा दी और सीताजी ने श्री रामजी के
पास गमन किया ।
दो0-बंदी मागध सूतगन बिरुद बदहिं मतिधीर।
करहिं निछावरि लोग सब हय गय धन मनि चीर।।262।।
झाँझि मृदंग संख सहनाई। भेरि ढोल दुंदुभी सुहाई।।
बाजहिं बहु बाजने सुहाए। जहँ तहँ जुबतिन्ह मंगल गाए।।
सखिन्ह सहित हरषी अति रानी। सूखत धान परा जनु पानी।।
जनक लहेउ सुखु सोचु बिहाई। पैरत थकें थाह जनु पाई।।
श्रीहत भए भूप धनु टूटे। जैसें दिवस दीप छबि छूटे।।
सीय सुखहि बरनिअ केहि भाँती। जनु चातकी पाइ जलु स्वाती।।
रामहि लखनु बिलोकत कैसें। ससिहि चकोर किसोरकु जैसें।।
सतानंद तब आयसु दीन्हा। सीताँ गमनु राम पहिं कीन्हा।।
करहिं निछावरि लोग सब हय गय धन मनि चीर।।262।।
झाँझि मृदंग संख सहनाई। भेरि ढोल दुंदुभी सुहाई।।
बाजहिं बहु बाजने सुहाए। जहँ तहँ जुबतिन्ह मंगल गाए।।
सखिन्ह सहित हरषी अति रानी। सूखत धान परा जनु पानी।।
जनक लहेउ सुखु सोचु बिहाई। पैरत थकें थाह जनु पाई।।
श्रीहत भए भूप धनु टूटे। जैसें दिवस दीप छबि छूटे।।
सीय सुखहि बरनिअ केहि भाँती। जनु चातकी पाइ जलु स्वाती।।
रामहि लखनु बिलोकत कैसें। ससिहि चकोर किसोरकु जैसें।।
सतानंद तब आयसु दीन्हा। सीताँ गमनु राम पहिं कीन्हा।।
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