गुरुवार, 8 सितंबर 2016

255-सीताजी की माता का स्नेहवश बिलखना

श्रीरामचरितमानस से ...बालकांड
     प्रसंग:
सीताजी की माता का  स्नेहवश बिलखना

श्री रामचन्द्रजी को वात्सल्य  भाव से साथ देखकर और सखियों को समीप बुलाकर सीताजी की माता स्नेहवश बिलखकर ये वचन बोलीं-
हे सखी! ये जो हमारे हितू कहलाते हैं, वे भी सब तमाशा देखने वाले हैं। कोई भी इनके गुरु विश्वामित्रजी को समझाकर नहीं कहता कि ये रामजी बालक हैं, इनके लिए ऐसा हठ अच्छा नहीं।
रावण और बाणासुर ने जिस धनुष को छुआ तक नहीं और सब राजा घमंड करके हार गए, वही धनुष इस सुकुमार राजकुमार के हाथ में दे रहे हैं। हंस के बच्चे भी कहीं मंदराचल पहाड़ उठा सकते हैं?
और तो कोई समझाकर कहे या नहीं, राजा तो बड़े समझदार और ज्ञानी हैं, उन्हें तो गुरु को समझाने की चेष्टा करनी चाहिए थी, परन्तु मालूम होता है -राजा का भी सारा सयानापन समाप्त हो गया। हे सखी! विधाता की गति कुछ जानने में नहीं आती ।यों कहकर रानी चुप हो रहीं। तब एक चतुर रामजी के महत्व को जानने वाली) सखी कोमल वाणी से बोली- हे रानी! तेजवान को छोटा नहीं गिनना चाहिए ।
 कहाँ घड़े से उत्पन्न होने वाले से मुनि अगस्त्य और कहाँ समुद्र? किन्तु उन्होंने उसे सोख लिया, जिसका सुयश सारे संसार में छाया हुआ है। सूर्यमंडल देखने में छोटा लगता है, पर उसके उदय होते ही तीनों लोकों का अंधकार भाग जाता है ।

दो0-रामहि प्रेम समेत लखि सखिन्ह समीप बोलाइ।
सीता मातु सनेह बस बचन कहइ बिलखाइ।।255।।
सखि सब कौतुक देखनिहारे। जेठ कहावत हितू हमारे।।
कोउ न बुझाइ कहइ गुर पाहीं। ए बालक असि हठ भलि नाहीं।।
रावन बान छुआ नहिं चापा। हारे सकल भूप करि दापा।।
सो धनु राजकुअँर कर देहीं। बाल मराल कि मंदर लेहीं।।
भूप सयानप सकल सिरानी। सखि बिधि गति कछु जाति न जानी।।
बोली चतुर सखी मृदु बानी। तेजवंत लघु गनिअ न रानी।।
कहँ कुंभज कहँ सिंधु अपारा। सोषेउ सुजसु सकल संसारा।।
रबि मंडल देखत लघु लागा। उदयँ तासु तिभुवन तम भागा।।

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