शुक्रवार, 9 सितंबर 2016

301- --सुमंत्र जी दो रथ सजा कर लाते हैं ।




रामचरितमानस से ...बालकांड
     
प्रसंग: सुमंत्र जी दो रथ सजा कर लाते हैं ।

उस सुंदर रथ पर राजा वशिष्ठजी को हर्ष पूर्वक चढ़ाकर फिर स्वयं शिव, गुरु, गौरी और गणेशजी का स्मरण करके दूसरे रथ पर चढ़े
वशिष्ठजी के साथ जाते हुए राजा दशरथजी कैसे शोभित हो रहे हैं, जैसे देव गुरु बृहस्पतिजी के साथ इन्द्र हों। वेद की विधि से और कुल की रीति के अनुसार सब कार्य करके तथा सबको सब प्रकार से सजे देखकर,
श्री रामचन्द्रजी का स्मरण करके, गुरु की आज्ञा पाकर पृथ्वी पति दशरथजी शंख बजाकर चले। बारात देखकर देवता हर्षित हुए और सुंदर मंगलदायक फूलों की वर्षा करने लगे ।
बड़ा शोर मच गया, घोड़े और हाथी गरजने लगे। आकाश में और बारात में दोनों जगह बाजे बजने लगे। देवांगनाएँ और मनुष्यों की स्त्रियाँ सुंदर मंगलगान करने लगीं और रसीले राग से शहनाइयाँ बजने लगीं ।
घंटे-घंटियों की ध्वनि का वर्णन नहीं हो सकता। पैदल चलने वाले सेवकगण अथवा पट्टेबाज कसरत के खेल कर रहे हैं और फहरा रहे हैं (आकाश में ऊँचे उछलते हुए जा रहे हैं।) हँसी करने में निपुण और सुंदर गाने में चतुर विदूषक (मसखरे) तरह-तरह के तमाशे कर रहे हैं ।

दो0-तेहिं रथ रुचिर बसिष्ठ कहुँ हरषि चढ़ाइ नरेसु।
आपु चढ़ेउ स्पंदन सुमिरि हर गुर गौरि गनेसु।।301।।
सहित बसिष्ठ सोह नृप कैसें। सुर गुर संग पुरंदर जैसें।।
करि कुल रीति बेद बिधि राऊ। देखि सबहि सब भाँति बनाऊ।।
सुमिरि रामु गुर आयसु पाई। चले महीपति संख बजाई।।
हरषे बिबुध बिलोकि बराता। बरषहिं सुमन सुमंगल दाता।।
भयउ कोलाहल हय गय गाजे। ब्योम बरात बाजने बाजे।।
सुर नर नारि सुमंगल गाई। सरस राग बाजहिं सहनाई।।
घंट घंटि धुनि बरनि न जाहीं। सरव करहिं पाइक फहराहीं।।
करहिं बिदूषक कौतुक नाना। हास कुसल कल गान सुजाना ।

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