श्रीरामचरितमानस से ...बालकांड
प्रसंग:
जनकप्रतिज्ञा की घोषणाप्रसंग:
भाटों ने श्रेष्ठ वचन कहा- हे पृथ्वी की पालना
करने वाले सब राजागण! सुनिए। हम अपनी भुजा उठाकर जनकजी का विशाल प्रण कहते हैं-
राजाओं की भुजाओं का बल चन्द्रमा है, शिवजी का धनुष राहु है, वह भारी है, कठोर है, यह सबको विदित है। बड़े भारी योद्धा रावण
और बाणासुर भी इस धनुष को देखकर चुपके से चलते बने ,उसे
उठाना तो दूर रहा, छूने तक की हिम्मत न हुई ।उसी शिवजी के
कठोर धनुष को आज इस राज समाज में जो भी तोड़ेगा, तीनों लोकों
की विजय के साथ ही उसको जानकीजी बिना किसी विचार के हठपूर्वक वरण करेंगी ।
प्रण सुनकर सब राजा ललचा उठे। जो वीरता के
अभिमानी थे, वे मन में बहुत ही तमतमाए। कमर कसकर अकुलाकर उठे
और अपने इष्टदेवों को सिर नवाकर चले ।वे तमककर बड़े ताव से शिवजी के धनुष की ओर
देखते हैं और फिर निगाह जमाकर उसे पकड़ते हैं, करोड़ों भाँति
से जोर लगाते हैं, पर वह उठता ही नहीं। जिन राजाओं के मन में
कुछ विवेक है, वे तो धनुष के पास ही नहीं जाते ।
दो0-बोले बंदी बचन बर
सुनहु सकल महिपाल।
पन बिदेह कर कहहिं हम भुजा उठाइ बिसाल।।249।।
नृप भुजबल बिधु सिवधनु राहू। गरुअ कठोर बिदित सब काहू।।
रावनु बानु महाभट भारे। देखि सरासन गवँहिं सिधारे।।
सोइ पुरारि कोदंडु कठोरा। राज समाज आजु जोइ तोरा।।
त्रिभुवन जय समेत बैदेही।।बिनहिं बिचार बरइ हठि तेही।।
सुनि पन सकल भूप अभिलाषे। भटमानी अतिसय मन माखे।।
परिकर बाँधि उठे अकुलाई। चले इष्टदेवन्ह सिर नाई।।
तमकि ताकि तकि सिवधनु धरहीं। उठइ न कोटि भाँति बलु करहीं।।
जिन्ह के कछु बिचारु मन माहीं। चाप समीप महीप न जाहीं।।
पन बिदेह कर कहहिं हम भुजा उठाइ बिसाल।।249।।
नृप भुजबल बिधु सिवधनु राहू। गरुअ कठोर बिदित सब काहू।।
रावनु बानु महाभट भारे। देखि सरासन गवँहिं सिधारे।।
सोइ पुरारि कोदंडु कठोरा। राज समाज आजु जोइ तोरा।।
त्रिभुवन जय समेत बैदेही।।बिनहिं बिचार बरइ हठि तेही।।
सुनि पन सकल भूप अभिलाषे। भटमानी अतिसय मन माखे।।
परिकर बाँधि उठे अकुलाई। चले इष्टदेवन्ह सिर नाई।।
तमकि ताकि तकि सिवधनु धरहीं। उठइ न कोटि भाँति बलु करहीं।।
जिन्ह के कछु बिचारु मन माहीं। चाप समीप महीप न जाहीं।।
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