गुरुवार, 8 सितंबर 2016

287-मंडप की रचना


रामचरितमानस से ...बालकांड
     प्रसंग:
  मंडप की रचना

हरी-हरी मणियों के पत्ते और फल बनाए तथा पद्मराग मणियों के फूल बनाए। मंडप की अत्यन्त विचित्र रचना देखकर ब्रह्मा का मन भी भूल गया ।
बाँस सब हरी-हरी मणियों के सीधे और गाँठों से युक्त ऐसे बनाए जो पहचाने नहीं जाते थे । सोने की सुंदर नागबेली बनाई, जो पत्तों सहित ऐसी भली मालूम होती थी कि पहचानी नहीं जाती थी ।
उसी नागबेली के रचकर और पच्चीकारी करके बंधन बनाए। बीच-बीच में मोतियों की सुंदर झालरें हैं। माणिक, पन्ने, हीरे और ‍िफरोजे, इन रत्नों को चीरकर, कोरकर और पच्चीकारी करके, इनके लाल, हरे, सफेद और फिरोजी रंग के कमल बनाए ।
भौंरे और बहुत रंगों के पक्षी बनाए, जो हवा के सहारे गूँजते और कूजते थे। खंभों पर देवताओं की मूर्तियाँ गढ़कर निकालीं, जो सब मंगल द्रव्य लिए खड़ी थीं ।
गजमुक्ताओं के सहज ही सुहावने अनेकों तरह के चौक पुराए ।

दो0-हरित मनिन्ह के पत्र फल पदुमराग के फूल।
रचना देखि बिचित्र अति मनु बिरंचि कर भूल।।287।।
बेनि हरित मनिमय सब कीन्हे। सरल सपरब परहिं नहिं चीन्हे।।
कनक कलित अहिबेल बनाई। लखि नहि परइ सपरन सुहाई।।
तेहि के रचि पचि बंध बनाए। बिच बिच मुकता दाम सुहाए।।
मानिक मरकत कुलिस पिरोजा। चीरि कोरि पचि रचे सरोजा।।
किए भृंग बहुरंग बिहंगा। गुंजहिं कूजहिं पवन प्रसंगा।।
सुर प्रतिमा खंभन गढ़ी काढ़ी। मंगल द्रब्य लिएँ सब ठाढ़ी।।
चौंकें भाँति अनेक पुराईं। सिंधुर मनिमय सहज सुहाई।।

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