रामचरितमानस
से ...बालकांड
प्रसंग: तुलसीदासजी कहते हैं कि बारात
ऐसी निकली है कि सारे
मंगल शकुन होने लगे ।
मंगलमय, कल्याणमय और मनोवांछित फल देने वाले शकुन मानो सच्चे
होने के लिए एक ही साथ हो गए ।
स्वयं सगुण ब्रह्म जिसके सुंदर
पुत्र हैं, उसके लिए सब मंगल शकुन सुलभ हैं।
जहाँ श्री रामचन्द्रजी सरीखे दूल्हा और सीताजी जैसी दुलहिन हैं तथा दशरथजी और
जनकजी जैसे पवित्र समधी हैं,
ऐसा ब्याह सुनकर मानो सभी शकुन
नाच उठे , मानो कह रहे
हों कि अब
ब्रह्माजी ने हमको सच्चा कर दिया। इस तरह बारात ने प्रस्थान किया। घोड़े, हाथी गरज रहे हैं और नगाड़ों पर चोट लग रही है ।
सूर्यवंश के पताका स्वरूप दशरथजी
को आते हुए जानकर जनकजी ने नदियों पर पुल बँधवा दिए। बीच-बीच में ठहरने के लिए
सुंदर घर (पड़ाव) बनवा दिए, जिनमें देवलोक के समान सम्पदा छाई
है,
और जहाँ बारात के सब लोग
अपने-अपने मन की पसंद के अनुसार सुहावने उत्तम भोजन, बिस्तर और वस्त्र पाते हैं। मन के अनुकूल नित्य नए
सुखों को देखकर सभी बारातियों को अपने घर भूल गए ।
दो0-मंगलमय कल्यानमय
अभिमत फल दातार।
जनु सब साचे होन हित भए सगुन एक बार।।303।।
मंगल सगुन सुगम सब ताकें। सगुन ब्रह्म सुंदर सुत जाकें।।
राम सरिस बरु दुलहिनि सीता। समधी दसरथु जनकु पुनीता।।
सुनि अस ब्याहु सगुन सब नाचे। अब कीन्हे बिरंचि हम साँचे।।
एहि बिधि कीन्ह बरात पयाना। हय गय गाजहिं हने निसाना।।
आवत जानि भानुकुल केतू। सरितन्हि जनक बँधाए सेतू।।
बीच बीच बर बास बनाए। सुरपुर सरिस संपदा छाए।।
असन सयन बर बसन सुहाए। पावहिं सब निज निज मन भाए।।
नित नूतन सुख लखि अनुकूले। सकल बरातिन्ह मंदिर भूले।।
जनु सब साचे होन हित भए सगुन एक बार।।303।।
मंगल सगुन सुगम सब ताकें। सगुन ब्रह्म सुंदर सुत जाकें।।
राम सरिस बरु दुलहिनि सीता। समधी दसरथु जनकु पुनीता।।
सुनि अस ब्याहु सगुन सब नाचे। अब कीन्हे बिरंचि हम साँचे।।
एहि बिधि कीन्ह बरात पयाना। हय गय गाजहिं हने निसाना।।
आवत जानि भानुकुल केतू। सरितन्हि जनक बँधाए सेतू।।
बीच बीच बर बास बनाए। सुरपुर सरिस संपदा छाए।।
असन सयन बर बसन सुहाए। पावहिं सब निज निज मन भाए।।
नित नूतन सुख लखि अनुकूले। सकल बरातिन्ह मंदिर भूले।।
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