श्रीरामचरितमानस से ...बालकांड
प्रसंग: श्री रामचन्द्रजी द्वारा धनुषभंग किए जाने से
प्रसंग: श्री रामचन्द्रजी द्वारा धनुषभंग किए जाने से
सारे ब्रह्माण्ड में जय-जयकार की ध्वनि छा गई।
शिवजी का धनुष जहाज है और श्री
रामचन्द्रजी की भुजाओं का बल समुद्र है। धनुष टूटने से वह सारा समाज डूब गया, जो मोहवश पहले इस जहाज पर चढ़ा था।
प्रभु ने धनुष के दोनों टुकड़े
पृथ्वी पर डाल दिए। यह देखकर सब लोग सुखी हुए। विश्वामित्र रूपी पवित्र समुद्र में, जिसमें प्रेम रूपी सुंदर अथाह जल भरा है, राम
रूपी पूर्णचन्द्र को देखकर पुलकावली रूपी भारी लहरें बढ़ने लगीं। आकाश में बड़े
जोर से नगाड़े बजने लगे और देवांगनाएँ गान करके नाचने लगीं । ब्रह्मा आदि देवता, सिद्ध और मुनीश्वर लोग प्रभु की प्रशंसा कर रहे हैं
और आशीर्वाद दे रहे हैं। वे रंग-बिरंगे फूल और मालाएँ बरसा रहे हैं। किन्नर लोग
रसीले गीत गा रहे हैं । सारे
ब्रह्माण्ड में जय-जयकार की ध्वनि छा गई,
जिसमें
धनुष टूटने की ध्वनि जान ही नहीं पड़ती। जहाँ-तहाँ स्त्री-पुरुष प्रसन्न होकर कह
रहे हैं कि श्री रामचन्द्रजी ने शिवजी के भारी धनुष को तोड़ डाला ।
सो0-संकर चापु जहाजु
सागरु रघुबर बाहुबलु।
बूड़ सो सकल समाजु चढ़ा जो प्रथमहिं मोह बस।।261।।
प्रभु दोउ चापखंड महि डारे। देखि लोग सब भए सुखारे।।
बूड़ सो सकल समाजु चढ़ा जो प्रथमहिं मोह बस।।261।।
प्रभु दोउ चापखंड महि डारे। देखि लोग सब भए सुखारे।।
कोसिकरुप पयोनिधि पावन। प्रेम बारि अवगाहु
सुहावन।।
रामरूप राकेसु निहारी। बढ़त बीचि पुलकावलि भारी।।
बाजे नभ गहगहे निसाना। देवबधू नाचहिं करि गाना।।
ब्रह्मादिक सुर सिद्ध मुनीसा। प्रभुहि प्रसंसहि देहिं असीसा।।
बरिसहिं सुमन रंग बहु माला। गावहिं किंनर गीत रसाला।।
रही भुवन भरि जय जय बानी। धनुषभंग धुनि जात न जानी।।
मुदित कहहिं जहँ तहँ नर नारी। भंजेउ राम संभुधनु भारी।।
रामरूप राकेसु निहारी। बढ़त बीचि पुलकावलि भारी।।
बाजे नभ गहगहे निसाना। देवबधू नाचहिं करि गाना।।
ब्रह्मादिक सुर सिद्ध मुनीसा। प्रभुहि प्रसंसहि देहिं असीसा।।
बरिसहिं सुमन रंग बहु माला। गावहिं किंनर गीत रसाला।।
रही भुवन भरि जय जय बानी। धनुषभंग धुनि जात न जानी।।
मुदित कहहिं जहँ तहँ नर नारी। भंजेउ राम संभुधनु भारी।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें