शुक्रवार, 9 सितंबर 2016

314-अवध नरेश दशरथजी का भाग्य और वैभव देखकर ब्रह्माजी आदि देवता का आश्चर्यचकित हो जाना ।



रामचरितमानस से ...बालकांड

प्रसंग: अवध नरेश दशरथजी का भाग्य और वैभव देखकर ब्रह्माजी आदि देवता का आश्चर्यचकित हो जाना ।

ब्रह्माजी आदि देवता को  आश्चर्यचकित देखकर  शिवजी ने सब देवताओं को समझाया कि तुम लोग आश्चर्य में मत भूलो। हृदय में धीरज धरकर विचार तो करो कि यह भगवान की महामहिमामयी निजशक्ति श्री सीताजी का और अखिल ब्रह्माण्डों के परम ईश्वर साक्षात्‌ भगवान श्री रामचन्द्रजी का विवाह है ,जिनका नाम लेते ही जगत में सारे अमंगलों की जड़ कट जाती है और चारों पदार्थ (अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष) मुट्ठी में आ जाते हैं, ये वही (जगत के माता-पिता) श्री सीतारामजी हैं, काम के शत्रु शिवजी ने ऐसा कहा ।
इस प्रकार शिवजी ने देवताओं को समझाया और फिर अपने श्रेष्ठ बैल नंदीश्वर को आगे बढ़ाया। देवताओं ने देखा कि दशरथजी मन में बड़े ही प्रसन्न और शरीर से पुलकित हुए चले जा रहे हैं ।
उनके साथ साधुओं और ब्राह्मणों की मंडली ऐसी शोभा दे रही है, मानो समस्त सुख शरीर धारण करके उनकी सेवा कर रहे हों। चारों सुंदर पुत्र साथ में ऐसे सुशोभित हैं, मानो सम्पूर्ण मोक्ष (सालोक्य, सामीप्य, सारूप्य, सायुज्य) शरीर धारण किए हुए हों ।
मरकतमणि और सुवर्ण के रंग की सुंदर जोड़ियों को देखकर देवताओं को बहुत ही प्रीति हुई। फिर रामचन्द्रजी को देखकर वे हृदय में अत्यन्त हर्षित हुए और राजा की सराहना करके उन्होंने फूल बरसाए ।

दो0-सिवँ समुझाए देव सब जनि आचरज भुलाहु।
हृदयँ बिचारहु धीर धरि सिय रघुबीर बिआहु।।314।।
जिन्ह कर नामु लेत जग माहीं। सकल अमंगल मूल नसाहीं।।
करतल होहिं पदारथ चारी। तेइ सिय रामु कहेउ कामारी।।
एहि बिधि संभु सुरन्ह समुझावा। पुनि आगें बर बसह चलावा।।
देवन्ह देखे दसरथु जाता। महामोद मन पुलकित गाता।।
साधु समाज संग महिदेवा। जनु तनु धरें करहिं सुख सेवा।।
सोहत साथ सुभग सुत चारी। जनु अपबरग सकल तनुधारी।।
मरकत कनक बरन बर जोरी। देखि सुरन्ह भै प्रीति न थोरी।।
पुनि रामहि बिलोकि हियँ हरषे। नृपहि सराहि सुमन तिन्ह बरषे।।

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