श्रीरामचरितमानस से ...बालकांड
प्रसंग: परशुरामजी ने धनुष के टुकड़े पृथ्वी पर पड़े हुए देखा और क्रोधित होकर पूछा - बता, धनुष किसने तोड़ा? ।
परशुरामजी
सब देखकर, अनजान की तरह जनकजी से पूछते हैं कि कहो,
यह बड़ी भारी भीड़ कैसी है? उनके शरीर में
क्रोध छा गया ।
जिस
कारण सब राजा आए थे, राजा जनक ने वे सब समाचार कह सुनाए। जनक के
वचन सुनकर परशुरामजी ने फिरकर दूसरी ओर देखा तो धनुष के टुकड़े पृथ्वी पर पड़े हुए
दिखाई दिए ।
अत्यन्त
क्रोध में भरकर वे जनक से कठोर वचन बोले-!
बता,
धनुष किसने तोड़ा? उसे शीघ्र दिखा, नहीं तो आज मैं जहाँ तक तेरा राज्य है, वहाँ तक की
पृथ्वी उलट दूँगा ।
राजा
को अत्यन्त डर लगा, जिसके कारण वे उत्तर नहीं देते। यह देखकर
कुटिल राजा मन में बड़े प्रसन्न हुए। देवता, मुनि, नाग और नगर के स्त्री-पुरुष सभी सोच करने लगे, सबके
हृदय में बड़ा भय है ।
सीताजी
की माता मन में पछता रही हैं कि हाय! विधाता ने अब बनी-बनाई बात बिगाड़ दी।
परशुरामजी का स्वभाव सुनकर सीताजी को आधा क्षण भी कल्प के समान बीतते लगा ।
दो0-बहुरि बिलोकि बिदेह
सन कहहु काह अति भीर।।
पूछत जानि अजान जिमि ब्यापेउ कोपु सरीर।।269।।
समाचार कहि जनक सुनाए। जेहि कारन महीप सब आए।।
सुनत बचन फिरि अनत निहारे। देखे चापखंड महि डारे।।
अति रिस बोले बचन कठोरा। कहु जड़ जनक धनुष कै तोरा।।
बेगि देखाउ मूढ़ न त आजू। उलटउँ महि जहँ लहि तव राजू।।
अति डरु उतरु देत नृपु नाहीं। कुटिल भूप हरषे मन माहीं।।
सुर मुनि नाग नगर नर नारी।।सोचहिं सकल त्रास उर भारी।।
मन पछिताति सीय महतारी। बिधि अब सँवरी बात बिगारी।।
भृगुपति कर सुभाउ सुनि सीता। अरध निमेष कलप सम बीता।।
पूछत जानि अजान जिमि ब्यापेउ कोपु सरीर।।269।।
समाचार कहि जनक सुनाए। जेहि कारन महीप सब आए।।
सुनत बचन फिरि अनत निहारे। देखे चापखंड महि डारे।।
अति रिस बोले बचन कठोरा। कहु जड़ जनक धनुष कै तोरा।।
बेगि देखाउ मूढ़ न त आजू। उलटउँ महि जहँ लहि तव राजू।।
अति डरु उतरु देत नृपु नाहीं। कुटिल भूप हरषे मन माहीं।।
सुर मुनि नाग नगर नर नारी।।सोचहिं सकल त्रास उर भारी।।
मन पछिताति सीय महतारी। बिधि अब सँवरी बात बिगारी।।
भृगुपति कर सुभाउ सुनि सीता। अरध निमेष कलप सम बीता।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें