श्रीरामचरितमानस से ...बालकांड
प्रसंग: परशुरामजी ने सीताजी को आशीर्वाद दिया और राम और लक्ष्मण की सुंदर जोड़ी देखकर परशुरामजी ने उन्हें भी आशीर्वाद दिया।
प्रसंग: परशुरामजी ने सीताजी को आशीर्वाद दिया और राम और लक्ष्मण की सुंदर जोड़ी देखकर परशुरामजी ने उन्हें भी आशीर्वाद दिया।
तुलसीदासजी
कहते हैं कि परशुराम जी का शांत वेष है, परन्तु करनी बहुत कठोर हैं, स्वरूप का वर्णन नहीं
किया जा सकता। मानो वीर रस ही मुनि का शरीर धारण करके, जहाँ
सब राजा लोग हैं, वहाँ आ गया हो ।
परशुरामजी
का भयानक वेष देखकर सब राजा भय से व्याकुल हो उठ खड़े हुए और पिता सहित अपना नाम
कह-कहकर सब दंडवत प्रणाम करने लगे ।
परशुरामजी
हित समझकर भी सहज ही जिसकी ओर देख लेते हैं, वह समझता है
मानो मेरी आयु पूरी हो गई। फिर जनकजी ने आकर सिर नवाया और सीताजी को बुलाकर प्रणाम
कराया ।
परशुरामजी
ने सीताजी को आशीर्वाद दिया। सखियाँ हर्षित हुईं और समझकर कि वहाँ अब अधिक देर ठहरना ठीक नहीं है , वे सीताजी को अपनी मंडली में ले
गईं। फिर विश्वामित्रजी आकर मिले और उन्होंने दोनों भाइयों को उनके चरण कमलों पर
गिराया ।
विश्वामित्रजी
ने कहा- ये राम और लक्ष्मण राजा दशरथ के पुत्र हैं। उनकी सुंदर जोड़ी देखकर
परशुरामजी ने आशीर्वाद दिया। कामदेव के भी मद को छुड़ाने वाले श्री रामचन्द्रजी के
अपार रूप को देखकर उनके नेत्र थकित हो गए
।
दो0-सांत बेषु करनी कठिन बरनि न जाइ सरुप।
धरि मुनितनु जनु बीर रसु आयउ जहँ सब भूप।।268।।
देखत भृगुपति बेषु कराला। उठे सकल भय बिकल भुआला।।
पितु समेत कहि कहि निज नामा। लगे करन सब दंड प्रनामा।।
जेहि सुभायँ चितवहिं हितु जानी। सो जानइ जनु आइ खुटानी।।
जनक बहोरि आइ सिरु नावा। सीय बोलाइ प्रनामु करावा।।
आसिष दीन्हि सखीं हरषानीं। निज समाज लै गई सयानीं।।
बिस्वामित्रु मिले पुनि आई। पद सरोज मेले दोउ भाई।।
रामु लखनु दसरथ के ढोटा। दीन्हि असीस देखि भल जोटा।।
रामहि चितइ रहे थकि लोचन। रूप अपार मार मद मोचन।।
धरि मुनितनु जनु बीर रसु आयउ जहँ सब भूप।।268।।
देखत भृगुपति बेषु कराला। उठे सकल भय बिकल भुआला।।
पितु समेत कहि कहि निज नामा। लगे करन सब दंड प्रनामा।।
जेहि सुभायँ चितवहिं हितु जानी। सो जानइ जनु आइ खुटानी।।
जनक बहोरि आइ सिरु नावा। सीय बोलाइ प्रनामु करावा।।
आसिष दीन्हि सखीं हरषानीं। निज समाज लै गई सयानीं।।
बिस्वामित्रु मिले पुनि आई। पद सरोज मेले दोउ भाई।।
रामु लखनु दसरथ के ढोटा। दीन्हि असीस देखि भल जोटा।।
रामहि चितइ रहे थकि लोचन। रूप अपार मार मद मोचन।।
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