रामचरितमानस
से ...बालकांड
प्रसंग: गजगामिनी, चन्द्रमुखी और मृगलोचनी स्त्रियाँ आनंदपूर्वक परछन के लिए चलीं ।
अनेक प्रकार से आरती सजाकर
और समस्त मंगल द्रव्यों को यथायोग्य सजाकर गजगामिनी स्त्रियाँ आनंदपूर्वक परछन के लिए चलीं ।
सभी स्त्रियाँ चन्द्रमुखी
और सभी मृगलोचनी हैं और सभी अपने
शरीर की शोभा से रति के गर्व को छुड़ाने वाली हैं। रंग-रंग की सुंदर साड़ियाँ पहने
हैं और शरीर पर सब आभूषण सजे हुए हैं ।
समस्त अंगों को सुंदर मंगल पदार्थों से सजाए हुए वे कोयल को भी
लजाती हुई गान कर रही हैं। कंगन, करधनी और नूपुर बज रहे हैं। स्त्रियों
की चाल देखकर कामदेव के हाथी भी लजा जाते हैं ।
अनेक प्रकार के बाजे बज रहे हैं, आकाश और नगर दोनों
स्थानों में सुंदर मंगलाचार हो रहे हैं। शची (इन्द्राणी), सरस्वती, लक्ष्मी, पार्वती और जो
स्वभाव से ही पवित्र और सयानी देवांगनाएँ थीं, वे सब कपट से सुंदर स्त्री का वेश
बनाकर रनिवास में जा मिलीं और मनोहर वाणी से मंगलगान करने लगीं। सब कोई हर्ष के
विशेष वश थे, अतः किसी ने उन्हें
पहचाना नहीं ।
दो0-सजि आरती
अनेक बिधि मंगल सकल सँवारि।
चलीं मुदित परिछनि करन गजगामिनि बर नारि।।317।।
बिधुबदनीं सब सब मृगलोचनि। सब निज तन छबि रति मदु मोचनि।।
पहिरें बरन बरन बर चीरा। सकल बिभूषन सजें सरीरा।।
सकल सुमंगल अंग बनाएँ। करहिं गान कलकंठि लजाएँ।।
कंकन किंकिनि नूपुर बाजहिं। चालि बिलोकि काम गज लाजहिं।।
बाजहिं बाजने बिबिध प्रकारा। नभ अरु नगर सुमंगलचारा।।
सची सारदा रमा भवानी। जे सुरतिय सुचि सहज सयानी।।
कपट नारि बर बेष बनाई। मिलीं सकल रनिवासहिं जाई।।
करहिं गान कल मंगल बानीं। हरष बिबस सब काहुँ न जानी।।
छं0-को जान केहि आनंद बस सब ब्रह्मु बर परिछन चली।
कल गान मधुर निसान बरषहिं सुमन सुर सोभा भली।।
आनंदकंदु बिलोकि दूलहु सकल हियँ हरषित भई।।
अंभोज अंबक अंबु उमगि सुअंग पुलकावलि छई।।
चलीं मुदित परिछनि करन गजगामिनि बर नारि।।317।।
बिधुबदनीं सब सब मृगलोचनि। सब निज तन छबि रति मदु मोचनि।।
पहिरें बरन बरन बर चीरा। सकल बिभूषन सजें सरीरा।।
सकल सुमंगल अंग बनाएँ। करहिं गान कलकंठि लजाएँ।।
कंकन किंकिनि नूपुर बाजहिं। चालि बिलोकि काम गज लाजहिं।।
बाजहिं बाजने बिबिध प्रकारा। नभ अरु नगर सुमंगलचारा।।
सची सारदा रमा भवानी। जे सुरतिय सुचि सहज सयानी।।
कपट नारि बर बेष बनाई। मिलीं सकल रनिवासहिं जाई।।
करहिं गान कल मंगल बानीं। हरष बिबस सब काहुँ न जानी।।
छं0-को जान केहि आनंद बस सब ब्रह्मु बर परिछन चली।
कल गान मधुर निसान बरषहिं सुमन सुर सोभा भली।।
आनंदकंदु बिलोकि दूलहु सकल हियँ हरषित भई।।
अंभोज अंबक अंबु उमगि सुअंग पुलकावलि छई।।
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