रामचरितमानस
से ...बालकांड
प्रसंग: वर
के रूप में श्री रामचन्द्रजी के सुंदर रूप का वर्णन ।
भावार्थ:- श्री रामचन्द्रजी के सुंदर रूप को नख
से शिखा तक बार-बार देखते हुए पार्वतीजी सहित श्री शिवजी का शरीर पुलकित हो गया और
उनके नेत्र . जल से भर गए ।
रामजी का मोर के कंठ की सी कांतिवाला श्याम शरीर है। बिजली का
अत्यन्त निरादर करने वाले प्रकाशमय सुंदर पीत रंग के वस्त्र हैं। सब मंगल रूप और
सब प्रकार के सुंदर भाँति-भाँति के विवाह के आभूषण शरीर पर सजाए हुए हैं ।
उनका सुंदर मुख शरत्पूर्णिमा के निर्मल चन्द्रमा के समान और नेत्र
नवीन कमल को लजाने वाले हैं। सारी सुंदरता अलौकिक है। वह कहीं नहीं जा सकती, मन ही मन बहुत प्रिय लगती है ।
साथ में मनोहर भाई शोभित हैं, जो चंचल घोड़ों को नचाते हुए चले जा रहे हैं। राजकुमार श्रेष्ठ
घोड़ों को दिखला रहे हैं और वंश की प्रशंसा करने वाले (मागध भाट) विरुदावली सुना
रहे हैं ।
जिस घोड़े पर श्री रामजी विराजमान हैं, उसकी तेज चाल देखकर गरुड़ भी लजा जाते हैं, उसका वर्णन नहीं हो सकता, वह सब प्रकार से सुंदर है। मानो
कामदेव ने ही घोड़े का वेष धारण कर लिया हो ।
मानो श्री रामचन्द्रजी के लिए कामदेव घोड़े का वेश बनाकर अत्यन्त
शोभित हो रहा है। वह अपनी अवस्था, बल, रूप, गुण और चाल से समस्त लोकों को मोहित कर रहा है। उसकी सुंदर घुँघरू
लगी ललित लगाम को देखकर देवता, मनुष्य और मुनि सभी
ठगे जाते हैं।
दोहा :
दो0-राम रूपु नख सिख सुभग
बारहिं बार निहारि।
पुलक गात लोचन सजल उमा समेत पुरारि।।315।।
केकि कंठ दुति स्यामल अंगा। तड़ित बिनिंदक बसन सुरंगा।।
ब्याह बिभूषन बिबिध बनाए। मंगल सब सब भाँति सुहाए।।
सरद बिमल बिधु बदनु सुहावन। नयन नवल राजीव लजावन।।
सकल अलौकिक सुंदरताई। कहि न जाइ मनहीं मन भाई।।
बंधु मनोहर सोहहिं संगा। जात नचावत चपल तुरंगा।।
राजकुअँर बर बाजि देखावहिं। बंस प्रसंसक बिरिद सुनावहिं।।
जेहि तुरंग पर रामु बिराजे। गति बिलोकि खगनायकु लाजे।।
कहि न जाइ सब भाँति सुहावा। बाजि बेषु जनु काम बनावा।।
छं0-जनु बाजि बेषु बनाइ मनसिजु राम हित अति सोहई।
आपनें बय बल रूप गुन गति सकल भुवन बिमोहई।।
जगमगत जीनु जराव जोति सुमोति मनि मानिक लगे।
किंकिनि ललाम लगामु ललित बिलोकि सुर नर मुनि ठगे।।
पुलक गात लोचन सजल उमा समेत पुरारि।।315।।
केकि कंठ दुति स्यामल अंगा। तड़ित बिनिंदक बसन सुरंगा।।
ब्याह बिभूषन बिबिध बनाए। मंगल सब सब भाँति सुहाए।।
सरद बिमल बिधु बदनु सुहावन। नयन नवल राजीव लजावन।।
सकल अलौकिक सुंदरताई। कहि न जाइ मनहीं मन भाई।।
बंधु मनोहर सोहहिं संगा। जात नचावत चपल तुरंगा।।
राजकुअँर बर बाजि देखावहिं। बंस प्रसंसक बिरिद सुनावहिं।।
जेहि तुरंग पर रामु बिराजे। गति बिलोकि खगनायकु लाजे।।
कहि न जाइ सब भाँति सुहावा। बाजि बेषु जनु काम बनावा।।
छं0-जनु बाजि बेषु बनाइ मनसिजु राम हित अति सोहई।
आपनें बय बल रूप गुन गति सकल भुवन बिमोहई।।
जगमगत जीनु जराव जोति सुमोति मनि मानिक लगे।
किंकिनि ललाम लगामु ललित बिलोकि सुर नर मुनि ठगे।।
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