रामचरितमानस से ...बालकांड
प्रसंग: महाराज दशरथ दूतों से पूछते हैं कि महाराज जनक ने उन्हें कैसे पहचाना?
प्रसंग: महाराज दशरथ दूतों से पूछते हैं कि महाराज जनक ने उन्हें कैसे पहचाना?
दूतों
ने कहा- हे राजाओं के मुकुटमणि! सुनिए, आपके
समान धन्य और कोई नहीं है, जिनके राम-लक्ष्मण
जैसे पुत्र हैं, जो
दोनों विश्व के विभूषण हैं ।
आपके
पुत्र पूछने योग्य नहीं हैं। वे पुरुषसिंह तीनों लोकों के प्रकाश स्वरूप हैं।
जिनके यश के आगे चन्द्रमा मलिन और प्रताप के आगे सूर्य शीतल लगता है। उनके
लिए आप कहते हैं कि उन्हें कैसे पहचाना! क्या सूर्य को हाथ में दीपक लेकर देखा
जाता है? सीताजी
के स्वयंवर में अनेकों राजा और एक से एक बढ़कर योद्धा एकत्र हुए थे । परंतु
शिवजी के धनुष को कोई भी नहीं हटा सका। सारे बलवान वीर हार गए। तीनों लोकों में जो
वीरता के अभिमानी थे, शिवजी के धनुष ने
सबकी शक्ति तोड़ दी ।
बाणासुर, जो
सुमेरु को भी उठा सकता था, वह भी हृदय में
हारकर परिक्रमा करके चला गया और जिसने खेल से ही कैलास को उठा लिया था, वह
रावण भी उस सभा में पराजय को प्राप्त हुआ ।
दो0-सुनहु महीपति मुकुट मनि
तुम्ह सम धन्य न कोउ।
रामु लखनु जिन्ह के तनय बिस्व बिभूषन दोउ।।291।।
पूछन जोगु न तनय तुम्हारे। पुरुषसिंघ तिहु पुर उजिआरे।।
जिन्ह के जस प्रताप कें आगे। ससि मलीन रबि सीतल लागे।।
तिन्ह कहँ कहिअ नाथ किमि चीन्हे। देखिअ रबि कि दीप कर लीन्हे।।
सीय स्वयंबर भूप अनेका। समिटे सुभट एक तें एका।।
संभु सरासनु काहुँ न टारा। हारे सकल बीर बरिआरा।।
तीनि लोक महँ जे भटमानी। सभ कै सकति संभु धनु भानी।।
सकइ उठाइ सरासुर मेरू। सोउ हियँ हारि गयउ करि फेरू।।
जेहि कौतुक सिवसैलु उठावा। सोउ तेहि सभाँ पराभउ पावा।।
रामु लखनु जिन्ह के तनय बिस्व बिभूषन दोउ।।291।।
पूछन जोगु न तनय तुम्हारे। पुरुषसिंघ तिहु पुर उजिआरे।।
जिन्ह के जस प्रताप कें आगे। ससि मलीन रबि सीतल लागे।।
तिन्ह कहँ कहिअ नाथ किमि चीन्हे। देखिअ रबि कि दीप कर लीन्हे।।
सीय स्वयंबर भूप अनेका। समिटे सुभट एक तें एका।।
संभु सरासनु काहुँ न टारा। हारे सकल बीर बरिआरा।।
तीनि लोक महँ जे भटमानी। सभ कै सकति संभु धनु भानी।।
सकइ उठाइ सरासुर मेरू। सोउ हियँ हारि गयउ करि फेरू।।
जेहि कौतुक सिवसैलु उठावा। सोउ तेहि सभाँ पराभउ पावा।।
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