श्रीरामचरितमानस से ...
बालकांड
प्रसंग : गुरु वंदना
.
गोस्वामी तुलसीदास जी उन गुरु महाराज के चरणकमल की वंदना करता है जो
कृपा के समुद्र और नर रूप में श्री हरि ही हैं और जिनके वचन महामोह रूपी घने
अन्धकार का नाश करने के लिए सूर्य किरणों के समूह हैं ।
वे गुरु
महाराज के चरण कमलों की रज की वन्दना करते हैं , जो सुरुचि सुगंध तथा अनुराग रूपी रस से
पूर्ण है। वह अमर मूल का सुंदर चूर्ण है, जो सम्पूर्ण भव
रोगों के परिवार को नाश करने वाला है ।
वह रज सुकृति रूपी शिवजी के शरीर पर सुशोभित
निर्मल विभूति है और सुंदर कल्याण और आनन्द की जननी है, भक्त के मन रूपी सुंदर दर्पण
के मैल को दूर करने वाली और तिलक करने से गुणों के समूह को वश में करने वाली है ।
श्री गुरु महाराज के चरण-नखों की ज्योति
मणियों के प्रकाश के समान है,
जिसके स्मरण करते ही हृदय में दिव्य दृष्टि उत्पन्न हो जाती है।
वह प्रकाश अज्ञान रूपी अन्धकार का नाश करने वाला है, वह
जिसके हृदय में आ जाता है, उसके बड़े भाग्य हैं ।
उसके हृदय में आते ही हृदय के निर्मल नेत्र
खुल जाते हैं और संसार रूपी रात्रि के दोष-दुःख मिट जाते हैं एवं श्री रामचरित्र
रूपी मणि और माणिक्य, गुप्त और
प्रकट जहाँ जो जिस खान में है, सब दिखाई पड़ने लगते हैं ।
जैसे सिद्धांजन को नेत्रों में लगाकर साधक, सिद्ध और सुजान पर्वतों,
वनों और पृथ्वी के अंदर कौतुक से ही बहुत सी खानें देखते हैं ।
श्री गुरु महाराज के चरणों की रज कोमल और
सुंदर नयनामृत अंजन है,
जो नेत्रों के दोषों का नाश करने वाला है। उस अंजन से विवेक रूपी
नेत्रों को निर्मल करके
.
|
|||||||
गुरुवार, 15 अक्टूबर 2015
बालकांड :(3) गुरु वंदना
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें