श्रीरामचरितमानस से ... बालकांड
प्रसंग
:
मानस का रूप और माहात्म्य
तुलसीदासजी कहते
हैं कि
.
राम –कथा में तीनों प्रकार के श्रोताओं का समाज ही इस नदी के दोनों
किनारों पर बसे हुए पुरवे, गाँव और नगर में है और संतों की सभा ही
सब सुंदर मंगलों की जड़ अनुपम अयोध्याजी हैं ।
सुंदर कीर्ति रूपी सुहावनी सरयूजी
रामभक्ति रूपी गंगाजी में जा मिलीं। छोटे भाई लक्ष्मण सहित श्री रामजी के युद्ध का
पवित्र यश रूपी सुहावना महानद सोन उसमें आ मिला ।
दोनों के बीच में भक्ति रूपी गंगाजी की
धारा ज्ञान और वैराग्य के सहित शोभित हो रही है। ऐसी तीनों तापों को डराने वाली यह
तिमुहानी नदी रामस्वरूप रूपी समुद्र की ओर जा रही है। ।इस (कीर्ति रूपी सरयू) का मूल मानस (श्री रामचरित) है और यह
(रामभक्ति रूपी) गंगाजी में मिली है, इसलिए यह सुनने वाले सज्जनों के मन को पवित्र कर देगी। इसके बीच-बीच में जो
भिन्न-भिन्न प्रकार की विचित्र कथाएँ हैं, वे ही मानो नदी तट के आस-पास के वन और बाग हैं ।
श्री पार्वतीजी और शिवजी के विवाह के
बाराती इस नदी में बहुत प्रकार के असंख्य जलचर जीव हैं। श्री रघुनाथजी के जन्म की
आनंद-बधाइयाँ ही इस नदी के भँवर और तरंगों की मनोहरता है।
चारों भाइयों के जो बालचरित हैं, वे ही इसमें खिले हुए रंग-बिरंगे बहुत से कमल हैं। महाराज
श्री दशरथजी तथा उनकी रानियों और कुटुम्बियों के सत्कर्म (पुण्य) ही भ्रमर और जल
पक्षी हैं ।
श्री सीताजी के स्वयंवर की जो सुन्दर कथा
है, वह इस नदी में सुहावनी छबि छा रही है।
अनेकों सुंदर विचारपूर्ण प्रश्न ही इस नदी की नावें हैं और उनके विवेकयुक्त उत्तर
ही चतुर केवट हैं ।
इस कथा को सुनकर पीछे जो आपस में चर्चा
होती है, वही इस नदी के सहारे-सहारे चलने वाले
यात्रियों का समाज शोभा पा रहा है। परशुरामजी का क्रोध इस नदी की भयानक धारा है और
श्री रामचंद्रजी के श्रेष्ठ वचन ही सुंदर बँधे हुए घाट हैं ।
भाइयों सहित श्री रामचंद्रजी के विवाह का
उत्साह ही इस कथा नदी की कल्याणकारिणी बाढ़ है, जो सभी को सुख देने वाली है। इसके कहने-सुनने में जो हर्षित और पुलकित होते
हैं, वे ही पुण्यात्मा पुरुष हैं, जो प्रसन्न मन से इस नदी में नहाते हैं ।
श्री रामचंद्रजी के राजतिलक के लिए जो
मंगल साज सजाया गया, वही मानो पर्व के समय इस नदी पर
यात्रियों के समूह इकट्ठे हुए हैं। कैकेयी की कुबुद्धि ही इस नदी में काई है, जिसके फलस्वरूप बड़ी भारी विपत्ति आ पड़ी ।
दोहा
:
*
श्रोता
त्रिबिध समाज पुर ग्राम नगर दुहुँ कूल।
संतसभा अनुपम अवध सकल सुमंगल मूल॥39॥
संतसभा अनुपम अवध सकल सुमंगल मूल॥39॥
चौपाई
:
*
रामभगति
सुरसरितहि जाई। मिली सुकीरति सरजु सुहाई॥
सानुज राम समर जसु पावन। मिलेउ महानदु सोन सुहावन॥1॥
सानुज राम समर जसु पावन। मिलेउ महानदु सोन सुहावन॥1॥
*
जुग
बिच भगति देवधुनि धारा। सोहति सहित सुबिरति बिचारा॥
त्रिबिध ताप त्रासक तिमुहानी। राम सरूप सिंधु समुहानी॥2॥
त्रिबिध ताप त्रासक तिमुहानी। राम सरूप सिंधु समुहानी॥2॥
*मानस मूल मिली सुरसरिही।
सुनत सुजन मन पावन करिही॥
बिच बिच कथा बिचित्र बिभागा। जनु सरि तीर तीर बन बागा॥3॥
बिच बिच कथा बिचित्र बिभागा। जनु सरि तीर तीर बन बागा॥3॥
*
उमा
महेस बिबाह बराती। ते जलचर अगनित बहुभाँती॥
रघुबर जनम अनंद बधाई। भवँर तरंग मनोहरताई॥4॥
रघुबर जनम अनंद बधाई। भवँर तरंग मनोहरताई॥4॥
दोहाः
*
बालचरित
चहु बंधु के बनज बिपुल बहुरंग।
नृप रानी परिजन सुकृत मधुकर बारि बिहंग॥40॥
नृप रानी परिजन सुकृत मधुकर बारि बिहंग॥40॥
चौपाई
:
*
सीय
स्वयंबर कथा सुहाई। सरित सुहावनि सो छबि छाई॥
नदी नाव पटु प्रस्न अनेका। केवट कुसल उतर सबिबेका॥1॥
नदी नाव पटु प्रस्न अनेका। केवट कुसल उतर सबिबेका॥1॥
*
सुनि
अनुकथन परस्पर होई। पथिक समाज सोह सरि सोई॥
घोर धार भृगुनाथ रिसानी। घाट सुबद्ध राम बर बानी॥2॥
घोर धार भृगुनाथ रिसानी। घाट सुबद्ध राम बर बानी॥2॥
*
सानुज
राम बिबाह उछाहू। सो सुभ उमग सुखद सब काहू॥
कहत सुनत हरषहिं पुलकाहीं। ते सुकृती मन मुदित नहाहीं॥3॥
कहत सुनत हरषहिं पुलकाहीं। ते सुकृती मन मुदित नहाहीं॥3॥
*
राम
तिलक हित मंगल साजा। परब जोग जनु जुरे समाजा।
काई कुमति केकई केरी। परी जासु फल बिपति घनेरी॥4॥
काई कुमति केकई केरी। परी जासु फल बिपति घनेरी॥4॥
दोहा
:
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समन
अमित उतपात सब भरत चरित जपजाग।
कलि अघ खल अवगुन कथन ते जलमल बग काग॥41॥
कलि अघ खल अवगुन कथन ते जलमल बग काग॥41॥
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