श्रीरामचरितमानस से ...
बालकांड
प्रसंग : सरस्वती और
देवनदी गंगाजी की तथा शिव, पार्वती आदि की वंदना….
तुलसीदास जी कहते हैं कि
अब मैं सरस्वती और
देवनदी गंगाजी की वंदना करता हूँ। दोनों पवित्र और मनोहर चरित्र वाली हैं।
गंगाजी स्नान करने और जल पीने से पापों को हरती है और सरस्वतीजी गुण और यश कहने
और सुनने से अज्ञान का नाश कर देती है ।
श्री महेश और पार्वती को मैं प्रणाम करता हूँ, जो मेरे गुरु और माता-पिता
हैं, जो
दीनबन्धु और नित्य दान करने वाले हैं, जो सीतापति श्री रामचन्द्रजी के सेवक, स्वामी और सखा हैं तथा मुझ
तुलसीदास को सब प्रकार से हित
करने वाले हैं ।
जिन शिव-पार्वती ने कलियुग को देखकर, जगत के हित के लिए, शाबर मन्त्र समूह की रचना
की, जिन
मंत्रों के अक्षर बेमेल हैं, जिनका न कोई ठीक अर्थ होता है और न जप ही होता है, तथापि श्री शिवजी के प्रताप
से जिनका प्रभाव प्रत्यक्ष है ।
वे उमापति शिवजी मुझ पर प्रसन्न होकर श्री रामजी की इस
कथा को आनन्द और मंगल बनाएँगे। इस प्रकार पार्वतीजी और शिवजी दोनों का स्मरण
करके और उनका प्रसाद पाकर मैं चाव भरे चित्त से श्री रामचरित्र का वर्णन करता
हूँ ।
मेरी कविता श्री शिवजी की कृपा से ऐसी सुशोभित होगी, जैसी तारागणों के सहित
चन्द्रमा के साथ रात्रि शोभित होती है, जो इस कथा को प्रेम सहित एवं सावधानी के साथ समझ-बूझकर
कहें-सुनेंगे, वे
कलियुग के पापों से रहित और सुंदर कल्याण के भागी होकर श्री रामचन्द्रजी के
चरणों के प्रेमी बन जाएँगे ।
यदि मु्झ पर श्री शिवजी और पार्वतीजी की स्वप्न में भी
सचमुच प्रसन्नता हो, तो
मैंने इस भाषा कविता का जो प्रभाव कहा है, वह सब सच हो ।
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