श्रीरामचरितमानस से ... बालकांड
प्रसंग
: याज्ञवल्क्य-भरद्वाज संवाद: हे प्रभो! मैं आपसे पूछता हूँ कि वे राम कौन
हैं? हे कृपानिधान! मुझे समझाकर
कहिए ।
तुलसीदासजी कहते हैं कि
हे प्रभो! संत लोग ऐसी नीति कहते हैं और वेद, पुराण तथा मुनिजन भी यही
बतलाते हैं कि गुरु के साथ छिपाव करने से हृदय में निर्मल ज्ञान नहीं होता ।
यही सोचकर मैं अपना अज्ञान प्रकट करता हूँ।
हे नाथ! सेवक पर कृपा करके इस अज्ञान का नाश कीजिए। संतों, पुराणों और उपनिषदों ने राम
नाम के असीम प्रभाव का गान किया है ।
कल्याण स्वरूप, ज्ञान और गुणों की राशि, अविनाशी भगवान् शम्भु निरंतर राम नाम का जप करते रहते हैं। संसार में
चार जाति के जीव हैं, काशी में मरने से सभी परम पद को
प्राप्त करते हैं ।
हे मुनिराज! वह भी राम नाम की ही महिमा है, क्योंकि शिवजी दया करके काशी
में मरने वाले जीव को राम नाम का ही उपदेश करते हैं और इसी से उनको परम पद मिलता
है।
हे
प्रभो! मैं आपसे पूछता हूँ कि वे राम कौन हैं? हे कृपानिधान! मुझे समझाकर कहिए ।
एक राम तो अवध नरेश दशरथजी के कुमार हैं, उनका चरित्र सारा संसार
जानता है। उन्होंने स्त्री के विरह में अपार दुःख उठाया और क्रोध आने पर युद्ध
में रावण को मार डाला॥4॥
हे प्रभो! वही राम हैं या और कोई दूसरे हैं, जिनको शिवजी जपते हैं?
आप सत्य के धाम हैं और सब कुछ जानते हैं, ज्ञान
विचार कर कहिए ।
हे नाथ! जिस प्रकार से मेरा यह भारी भ्रम मिट
जाए, आप वही
कथा विस्तारपूर्वक कहिए।
इस
पर याज्ञवल्क्यजी मुस्कुराकर बोले,
श्री रघुनाथजी की प्रभुता को तुम जानते हो ।
तुम मन,
वचन और कर्म से श्री रामजी के भक्त हो। तुम्हारी चतुराई को मैं
जान गया। तुम श्री रामजी के रहस्यमय गुणों को सुनना चाहते हो, इसी से तुमने ऐसा प्रश्न किया है मानो बड़े ही मूढ़ हो ।
हे तात! तुम आदरपूर्वक मन लगाकर सुनो, मैं श्री रामजी की सुंदर कथा
कहता हूँ। बड़ा भारी अज्ञान विशाल महिषासुर है और श्री रामजी की कथा उसे नष्ट कर
देने वाली भयंकर कालीजी हैं ।
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दोहा :
* संत कहहिं असि नीति प्रभु
श्रुति पुरान मुनि गाव।
होइ न बिमल बिबेक उर गुर सन किएँ दुराव॥45॥
चौपाई :
* अस बिचारि प्रगटउँ निज
मोहू। हरहु नाथ करि जन पर छोहू॥
राम नाम कर अमित प्रभावा। संत पुरान उपनिषद गावा॥1॥
* संतत जपत संभु अबिनासी।
सिव भगवान ग्यान गुन रासी॥
आकर चारि जीव जग अहहीं। कासीं मरत परम पद लहहीं॥2॥
*सोपि राम महिमा मुनिराया।
सिव उपदेसु करत करि दाया॥
रामु कवन प्रभु पूछउँ तोही। कहिअ बुझाइ कृपानिधि मोही॥3॥
* एक राम अवधेस कुमारा।
तिन्ह कर चरित बिदित संसारा॥
नारि बिरहँ दुखु लहेउ अपारा। भयउ रोषु रन रावनु मारा॥4॥
दोहा :
* प्रभु सोइ राम कि अपर कोउ
जाहि जपत त्रिपुरारि।
सत्यधाम सर्बग्य तुम्ह कहहु बिबेकु बिचारि॥46॥
* जैसें मिटै मोर भ्रम भारी।
कहहु सो कथा नाथ बिस्तारी॥
जागबलिक बोले मुसुकाई। तुम्हहि बिदित रघुपति प्रभुताई॥1॥
* रामभगत तुम्ह मन क्रम
बानी। चतुराई तुम्हारि मैं जानी॥
चाहहु सुनै राम गुन गूढ़ा कीन्हिहु प्रस्न मनहुँ अति मूढ़ा॥2॥
* तात सुनहु सादर मनु लाई।
कहउँ राम कै कथा सुहाई॥
महामोहु महिषेसु बिसाला। रामकथा कालिका कराला॥3॥ |
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