श्रीरामचरितमानस से ... बालकांड
प्रसंग
: मानस
का रूप और माहात्म्य
तुलसीदासजी कहते
हैं कि
यह रामचरित मानस जैसा है, जिस प्रकार बना है और जिस हेतु से जगत में इसका प्रचार हुआ, अब वही सब कथा मैं श्री उमा-महेश्वर का स्मरण करके कहता हूँ
।
श्री शिवजी की कृपा से उसके हृदय में
सुंदर बुद्धि का विकास हुआ, जिससे यह तुलसीदास श्री रामचरित मानस का
कवि हुआ। अपनी बुद्धि के अनुसार तो वह इसे मनोहर ही बनाता है, किन्तु फिर भी हे सज्जनो! सुंदर चित्त से सुनकर इसे आप
सुधार लीजिए।
सुंदर (सात्त्वकी) बुद्धि भूमि है, हृदय ही उसमें गहरा स्थान है, वेद-पुराण समुद्र हैं और साधु-संत मेघ हैं। वे साधु रूपी मेघ श्री रामजी के
सुयश रूपी सुंदर, मधुर, मनोहर और मंगलकारी जल की वर्षा करते हैं।
सगुण लीला का जो विस्तार से वर्णन करते
हैं, वही राम सुयश रूपी जल की निर्मलता है, जो मल का नाश करती है और जिस प्रेमाभक्ति का वर्णन नहीं
किया जा सकता, वही इस जल की मधुरता और सुंदर शीतलता है ।
वह (राम सुयश रूपी) जल सत्कर्म रूपी धान
के लिए हितकर है और श्री रामजी के भक्तों का तो जीवन ही है। वह पवित्र जल बुद्धि
रूपी पृथ्वी पर गिरा और सिमटकर सुहावने कान रूपी मार्ग से चला और मानस (हृदय) रूपी
श्रेष्ठ स्थान में भरकर वहीं स्थिर हो गया। वही पुराना होकर सुंदर, रुचिकर, शीतल और सुखदाई हो
गया ।
इस कथा में बुद्धि से विचारकर जो चार
अत्यन्त सुंदर और उत्तम संवाद (भुशुण्डि-गरुड़, शिव-पार्वती, याज्ञवल्क्य-भरद्वाज और तुलसीदास और संत)
रचे हैं, वही इस पवित्र और सुंदर सरोवर के चार
मनोहर घाट हैं ।
दोहा
:
*
जस
मानस जेहि बिधि भयउ जग प्रचार जेहि हेतु।
अब सोइ कहउँ प्रसंग सब सुमिरि उमा बृषकेतु॥35॥
अब सोइ कहउँ प्रसंग सब सुमिरि उमा बृषकेतु॥35॥
चौपाई
:
*
संभु
प्रसाद सुमति हियँ हुलसी। रामचरितमानस कबि तुलसी॥
करइ मनोहर मति अनुहारी। सुजन सुचित सुनि लेहु सुधारी॥1॥
करइ मनोहर मति अनुहारी। सुजन सुचित सुनि लेहु सुधारी॥1॥
*
सुमति
भूमि थल हृदय अगाधू। बेद पुरान उदधि घन साधू॥
बरषहिं राम सुजस बर बारी। मधुर मनोहर मंगलकारी॥2॥
बरषहिं राम सुजस बर बारी। मधुर मनोहर मंगलकारी॥2॥
*
लीला
सगुन जो कहहिं बखानी। सोइ स्वच्छता करइ मल हानी॥
प्रेम भगति जो बरनि न जाई। सोइ मधुरता सुसीतलताई॥3॥
प्रेम भगति जो बरनि न जाई। सोइ मधुरता सुसीतलताई॥3॥
*
सो
जल सुकृत सालि हित होई। राम भगत जन जीवन सोई॥
मेधा महि गत सो जल पावन। सकिलि श्रवन मग चलेउ सुहावन॥4॥
भरेउ सुमानस सुथल थिराना। सुखद सीत रुचि चारु चिराना॥5॥
मेधा महि गत सो जल पावन। सकिलि श्रवन मग चलेउ सुहावन॥4॥
भरेउ सुमानस सुथल थिराना। सुखद सीत रुचि चारु चिराना॥5॥
दोहा
:
*
सुठि
सुंदर संबाद बर बिरचे बुद्धि बिचारि।
तेइ एहि पावन सुभग सर घाट मनोहर चारि॥36॥
तेइ एहि पावन सुभग सर घाट मनोहर चारि॥36॥
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