श्रीरामचरितमानस से ...
बालकांड
प्रसंग
:संत –वंदना एवं संत –महिमा
तुलसीदास जी कहते हैं कि जो मनुष्य इस संत समाज रूपी तीर्थराज का
प्रभाव प्रसन्न मन से सुनते और समझते हैं और फिर अत्यन्त प्रेमपूर्वक इसमें गोते
लगाते हैं, वे इस
शरीर के रहते ही धर्म, अर्थ, काम,
मोक्ष- चारों फल पा जाते हैं ।
इस तीर्थराज में स्नान का फल तत्काल ऐसा
देखने में आता है कि कौए कोयल बन जाते हैं और बगुले हंस। यह सुनकर कोई आश्चर्य न
करे, क्योंकि
सत्संग की महिमा छिपी नहीं है ।
वाल्मीकिजी, नारदजी और अगस्त्यजी ने अपने-अपने मुखों
से अपने जीवन का वृत्तांत कहा है। जल में रहने वाले, जमीन
पर चलने वाले और आकाश में विचरने वाले नाना प्रकार के जड़-चेतन जितने जीव इस जगत
में हैं ।
उनमें से जिसने जिस समय जहाँ कहीं भी जिस
किसी यत्न से बुद्धि, कीर्ति,
सद्गति, विभूति और भलाई पाई है, सो सब सत्संग का ही प्रभाव समझना चाहिए। वेदों में और लोक में इनकी प्राप्ति
का दूसरा कोई उपाय नहीं है ।
सत्संग के बिना विवेक नहीं होता और श्री
रामजी की कृपा के बिना वह सत्संग सहज में मिलता नहीं। सत्संगति आनंद और कल्याण
की जड़ है। सत्संग की प्राप्ति ही फल है और सब साधन तो फूल है ।
दुष्ट भी सत्संगति पाकर सुधर जाते हैं, जैसे पारस के स्पर्श से लोहा
सुहावना हो जाता है बन जाता है किन्तु दैवयोग से यदि कभी सज्जन कुसंगति में पड़
जाते हैं, तो वे वहाँ भी साँप की मणि के समान अपने गुणों
का ही अनुसरण करते हैं। (अर्थात् जिस प्रकार साँप का संसर्ग पाकर भी मणि उसके
विष को ग्रहण नहीं करती तथा अपने सहज गुण प्रकाश को नहीं छोड़ती, उसी प्रकार साधु पुरुष दुष्टों के संग में रहकर भी दूसरों को प्रकाश ही
देते हैं, दुष्टों का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
ब्रह्मा, विष्णु, शिव,
कवि और पण्डितों की वाणी भी संत महिमा का वर्णन करने में सकुचाती
है, वह मुझसे किस प्रकार नहीं कही जाती, जैसे साग-तरकारी बेचने वाले से मणियों के गुण समूह नहीं कहे जा सकते ।
मैं संतों को प्रणाम करता हूँ, जिनके चित्त में समता है,
जिनका न कोई मित्र है और न शत्रु! जैसे अंजलि में रखे हुए सुंदर
फूल (जिस हाथ ने फूलों को तोड़ा और जिसने उनको रखा उन) दोनों ही हाथों को समान
रूप से सुगंधित करते हैं, वैसे ही संत शत्रु और मित्र
दोनों का ही समान रूप से कल्याण करते हैं।
संत सरल हृदय और जगत के हितकारी होते हैं, उनके ऐसे स्वभाव और स्नेह को
जानकर मैं विनय करता हूँ, मेरी इस बाल-विनय को सुनकर कृपा
करके श्री रामजी के चरणों में मुझे प्रीति दें
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