श्रीरामचरितमानस से ...बालकांड
प्रसंग : मैना
को नारद का उपदेश
हिमाचल की स्त्री (मैना) को दुःखी देखकर सारी स्त्रियाँ
व्याकुल हो गईं। मैना अपनी कन्या के स्नेह को याद करके विलाप करती, रोती और कहती थीं-
मैंने नारद का क्या बिगाड़ा था,
जिन्होंने मेरा बसता हुआ घर उजाड़ दिया
और जिन्होंने पार्वती को ऐसा उपदेश दिया कि जिससे उसने बावले वर के लिए तप किया ।
सचमुच उनके न किसी का मोह है,
न माया,
न उनके धन है, न घर है और न स्त्री
ही है, वे
सबसे उदासीन हैं। इसी से वे दूसरे का घर उजाड़ने वाले हैं। उन्हें न किसी की लाज
है, न
डर है। भला, बाँझ
स्त्री प्रसव की पीड़ा को क्या जाने ।
माता को विकल देखकर पार्वतीजी विवेकयुक्त कोमल वाणी बोलीं- हे
माता! जो विधाता रच देते हैं, वह टलता नहीं, ऐसा विचार कर तुम सोच मत करो!
जो मेरे भाग्य में बावला ही पति लिखा है, तो किसी को क्यों दोष
लगाया जाए? हे
माता! क्या विधाता के अंक तुमसे मिट सकते हैं?
वृथा कलंक का टीका मत ल
हे माता! कलंक मत लो,
रोना छोड़ो, यह अवसर विषाद करने
का नहीं है। मेरे भाग्य में जो दुःख-सुख लिखा है,
उसे मैं जहाँ जाऊँगी, वहीं पाऊँगी!
पार्वतीजी के ऐसे विनय भरे कोमल वचन सुनकर सारी स्त्रियाँ सोच करने लगीं और
भाँति-भाँति से विधाता को दोष देकर आँखों से आँसू बहाने लगीं।
इस समाचार को सुनते ही हिमाचल उसी समय नारदजी और सप्त ऋषियों को साथ लेकर अपने घर गए।
इस समाचार को सुनते ही हिमाचल उसी समय नारदजी और सप्त ऋषियों को साथ लेकर अपने घर गए।
तब नारदजी ने पूर्वजन्म की कथा सुनाकर सबको समझाया और कहा कि
हे मैना! तुम मेरी सच्ची बात सुनो,
तुम्हारी यह लड़की साक्षात जगज्जनी
भवानी है ।
ये अजन्मा, अनादि और अविनाशिनी शक्ति हैं। सदा शिवजी के अर्द्धांग में
रहती हैं। ये जगत की उत्पत्ति, पालन और संहार करने वाली हैं और अपनी इच्छा से ही लीला शरीर
धारण करती हैं।
पहले ये दक्ष के घर जाकर जन्मी थीं, तब इनका सती नाम था, बहुत सुंदर शरीर पाया
था। वहाँ भी सती शंकरजी से ही ब्याही गई थीं। यह कथा सारे जगत में प्रसिद्ध है ।
एक बार इन्होंने शिवजी के साथ आते हुए रघुकुल रूपी कमल के
सूर्य श्री रामचन्द्रजी को देखा, तब इन्हें मोह हो गया और इन्होंने शिवजी का कहना न मानकर भ्रमवश
सीताजी का वेष धारण कर लिया ।
सतीजी ने जो सीता का वेष धारण किया, उसी अपराध के कारण
शंकरजी ने उनको त्याग दिया। फिर शिवजी के वियोग में ये अपने पिता के यज्ञ में जाकर
वहीं योगाग्नि से भस्म हो गईं। अब इन्होंने तुम्हारे घर जन्म लेकर अपने पति के लिए
कठिन तप किया है ऐसा जानकर संदेह छोड़ दो,
पार्वतीजी तो सदा ही शिवजी की प्रिया
(अर्द्धांगिनी) हैं।
तब नारद के वचन सुनकर सबका विषाद मिट गया और क्षणभर में यह
समाचार सारे नगर में घर-घर फैल गया ।
दोहा :
* भईं बिकल अबला सकल दुखित देखि गिरिनारि।
करि बिलापु रोदति बदति सुता सनेहु सँभारि॥96॥।
करि बिलापु रोदति बदति सुता सनेहु सँभारि॥96॥।
चौपाई :
* नारद कर मैं काह बिगारा। भवनु मोर जिन्ह बसत
उजारा॥
अस उपदेसु उमहि जिन्ह दीन्हा। बौरे बरहि लागि तपु कीन्हा॥1॥
अस उपदेसु उमहि जिन्ह दीन्हा। बौरे बरहि लागि तपु कीन्हा॥1॥
* साचेहुँ उन्ह कें मोह न माया। उदासीन धनु धामु न
जाया॥
पर घर घालक लाज न भीरा। बाँझ कि जान प्रसव कै पीरा॥2॥
पर घर घालक लाज न भीरा। बाँझ कि जान प्रसव कै पीरा॥2॥
* जननिहि बिकल बिलोकि भवानी। बोली जुत बिबेक मृदु
बानी॥
अस बिचारि सोचहि मति माता। सो न टरइ जो रचइ बिधाता॥3॥
अस बिचारि सोचहि मति माता। सो न टरइ जो रचइ बिधाता॥3॥
* करम लिखा जौं बाउर नाहू। तौ कत दोसु लगाइअ काहू॥
तुम्ह सन मिटहिं कि बिधि के अंका। मातु ब्यर्थ जनि लेहु कलंका॥4॥
तुम्ह सन मिटहिं कि बिधि के अंका। मातु ब्यर्थ जनि लेहु कलंका॥4॥
छन्द :
* जनि लेहु मातु कलंकु करुना परिहरहु अवसर नहीं।
दुखु सुखु जो लिखा लिलार हमरें जाब जहँ पाउब तहीं॥
सुनि उमा बचन बिनीत कोमल सकल अबला सोचहीं।
बहु भाँति बिधिहि लगाइ दूषन नयन बारि बिमोचहीं॥
दुखु सुखु जो लिखा लिलार हमरें जाब जहँ पाउब तहीं॥
सुनि उमा बचन बिनीत कोमल सकल अबला सोचहीं।
बहु भाँति बिधिहि लगाइ दूषन नयन बारि बिमोचहीं॥
दोहा :
* तेहि अवसर नारद सहित अरु रिषि सप्त समेत।
समाचार सुनि तुहिनगिरि गवने तुरत निकेत॥97॥
समाचार सुनि तुहिनगिरि गवने तुरत निकेत॥97॥
चौपाई :
* तब नारद सबही समुझावा। पूरुब कथा प्रसंगु
सुनावा॥
मयना सत्य सुनहु मम बानी। जगदंबा तव सुता भवानी॥1॥
मयना सत्य सुनहु मम बानी। जगदंबा तव सुता भवानी॥1॥
* अजा अनादि सक्ति अबिनासिनि। सदा संभु अरधंग
निवासिनि॥
जग संभव पालन लय कारिनि। निज इच्छा लीला बपु धारिनि॥2॥
जग संभव पालन लय कारिनि। निज इच्छा लीला बपु धारिनि॥2॥
* जनमीं प्रथम दच्छ गृह जाई। नामु सती सुंदर तनु
पाई॥
तहँहुँ सती संकरहि बिबाहीं। कथा प्रसिद्ध सकल जग माहीं॥3॥
तहँहुँ सती संकरहि बिबाहीं। कथा प्रसिद्ध सकल जग माहीं॥3॥
* एक बार आवत सिव संगा। देखेउ रघुकुल कमल पतंगा॥
भयउ मोहु सिव कहा न कीन्हा। भ्रम बस बेषु सीय कर लीन्हा॥4॥
भयउ मोहु सिव कहा न कीन्हा। भ्रम बस बेषु सीय कर लीन्हा॥4॥
छन्द :
* सिय बेषु सतीं जो कीन्ह तेहिं अपराध संकर
परिहरीं।
हर बिरहँ जाइ बहोरि पितु कें जग्य जोगानल जरीं॥
अब जनमि तुम्हरे भवन निज पति लागि दारुन तपु किया।
अस जानि संसय तजहु गिरिजा सर्बदा संकरप्रिया॥
हर बिरहँ जाइ बहोरि पितु कें जग्य जोगानल जरीं॥
अब जनमि तुम्हरे भवन निज पति लागि दारुन तपु किया।
अस जानि संसय तजहु गिरिजा सर्बदा संकरप्रिया॥
दोहा :
* सुनि नारद के बचन तब सब कर मिटा बिषाद।
छन महुँ ब्यापेउ सकल पुर घर घर यह संबाद॥98॥
छन महुँ ब्यापेउ सकल पुर घर घर यह संबाद॥98॥
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