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श्रीरामचरितमानस से ...बालकांड
प्रसंग :(1) सप्तर्षियों ने विभिन्न प्रकार से
पार्वती की परीक्षा ली । शिवजी में पार्वतीजी का ऐसा प्रेम देखकर ज्ञानी मुनि बोले- हे जगज्जननी! हे भवानी!
आपकी जय हो! जय हो!!
(2) ब्रह्माजी ने
देवताओं को समझाकर कहा- तारक दैत्य की मृत्यु तब होगी जब शिवजी के वीर्य
से पुत्र उत्पन्न हो, इसको युद्ध में वही जीतेगा ।
पार्वती ने कहा -अतः मैं नारदजी के वचनों को नहीं
छोड़ूँगी, चाहे घर बसे या उजड़े, इससे मैं नहीं डरती। जिसको गुरु के
वचनों में विश्वास नहीं है, उसको सुख और सिद्धि स्वप्न में भी सुगम नहीं होती ।
माना कि महादेवजी अवगुणों के भवन हैं
और विष्णु समस्त सद्गुणों के धाम हैं, पर जिसका मन
जिसमें रम गया, उसको तो उसी से काम है ।
हे मुनीश्वरों! यदि आप पहले मिलते, तो मैं आपका उपदेश सिर-माथे रखकर सुनती, परन्तु अब तो मैं अपना जन्म शिवजी के
लिए हार चुकी! फिर गुण-दोषों का विचार कौन करे?
यदि आपके हृदय में बहुत ही हठ है और
विवाह की बातचीत किए बिना आपसे रहा ही नहीं जाता, तो संसार में वर-कन्या बहुत हैं। और
कहीं जाकर कीजिए ।
।मेरा तो करोड़ जन्मों तक यही हठ
रहेगा कि या तो शिवजी को वरूँगी, नहीं तो कुमारी ही रहूँगी। स्वयं शिवजी सौ बार कहें, तो भी नारदजी के उपदेश को न
छोड़ूँगी॥3॥
।जगज्जननी पार्वतीजी ने फिर कहा कि
मैं आपके पैरों पड़ती हूँ। आप अपने घर जाइए, बहुत देर हो गई। शिवजी में पार्वतीजी का ऐसा प्रेम
देखकर ज्ञानी मुनि बोले- हे जगज्जननी! हे भवानी! आपकी जय हो! जय हो!!
आप माया हैं और शिवजी भगवान हैं। आप
दोनों समस्त जगत के माता-पिता हैं। (यह कहकर) मुनि पार्वतीजी के चरणों में सिर
नवाकर चल दिए। उनके शरीर बार-बार पुलकित हो रहे थे॥81॥
मुनियों ने जाकर हिमवान् को पार्वतीजी
के पास भेजा और वे विनती करके उनको घर ले आए, फिर सप्तर्षियों ने शिवजी के पास जाकर उनको पार्वतीजी
की सारी कथा सुनाई ।
पार्वतीजी का प्रेम सुनते ही शिवजी
आनन्दमग्न हो गए। सप्तर्षि प्रसन्न होकर अपने ब्रह्मलोक को चले गए। तब सुजान
शिवजी मन को स्थिर करके श्री रघुनाथजी का ध्यान करने लगे ।
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उसी समय तारक नाम का असुर हुआ, जिसकी भुजाओं का बल, प्रताप और तेज बहुत बड़ा था। उसने सब
लोक और लोकपालों को जीत लिया, सब देवता सुख और सम्पत्ति से रहित हो गये ।
वह अजर-अमर था, इसलिए किसी से जीता नहीं जाता था।
देवता उसके साथ बहुत तरह की लड़ाइयाँ लड़कर हार गए। तब उन्होंने ब्रह्माजी के
पास जाकर पुकार मचाई। ब्रह्माजी ने सब देवताओं को दुःखी देखा ।
ब्रह्माजी ने सबको समझाकर कहा- इस
दैत्य की मृत्यु तब होगी जब शिवजी के वीर्य से पुत्र उत्पन्न हो, इसको युद्ध में वही जीतेगा ।
दोहा :
* महादेव अवगुन भवन बिष्नु सकल गुन धाम।
जेहि कर मनु रम जाहि सन तेहि तेही सन काम॥80॥
चौपाई :
* जौं तुम्ह मिलतेहु प्रथम मुनीसा। सुनतिउँ सिख तुम्हारि धरि सीसा॥
अब मैं जन्मु संभु हित हारा। को गुन दूषन करै बिचारा॥1॥
* जौं तुम्हरे हठ हृदयँ बिसेषी। रहि न जाइ बिनु किएँ बरेषी॥
तौ कौतुकिअन्ह आलसु नाहीं। बर कन्या अनेक जग माहीं॥2॥
* जन्म कोटि लगि रगर हमारी। बरउँ संभु न त रहउँ कुआरी॥
तजउँ न नारद कर उपदेसू। आपु कहहिं सत बार महेसू॥3॥
* मैं पा परउँ कहइ जगदंबा। तुम्ह गृह गवनहु भयउ बिलंबा॥
देखि प्रेमु बोले मुनि ग्यानी। जय जय जगदंबिके भवानी॥4॥
दोहा :
* तुम्ह माया भगवान सिव सकल गजत पितु मातु।
नाइ चरन सिर मुनि चले पुनि पुनि हरषत गातु॥81॥
चौपाई :
* जाइ मुनिन्ह हिमवंतु पठाए। करि बिनती गिरजहिं गृह ल्याए॥
बहुरि सप्तरिषि सिव पहिं जाई। कथा उमा कै सकल सुनाई॥1॥
* भए मगन सिव सुनत सनेहा। हरषि सप्तरिषि गवने गेहा॥
मनु थिर करि तब संभु सुजाना। लगे करन रघुनायक ध्याना॥2॥
* तारकु असुर भयउ तेहि काला। भुज प्रताप बल तेज बिसाला॥
तेहिं सब लोक लोकपति जीते। भए देव सुख संपति रीते॥3॥
*अजर अमर सो जीति न जाई। हारे सुर करि बिबिध लराई॥
तब बिरंचि सन जाइ पुकारे। देखे बिधि सब देव दुखारे॥4॥
दोहा :
* सब सन कहा बुझाइ बिधि दनुज निधन तब होइ।
संभु सुक्र संभूत सुत एहि जीतइ रन सोइ॥82॥
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