श्रीरामचरितमानस से ... बालकांड
प्रसंग
: . कवि वंदना
गोस्वामी
तुलसीदास जी कहते हैं किजो अत्यन्त बड़ी श्रेष्ठ नदियाँ हैं, यदि राजा उन पर पुल बँधा देता है, तो अत्यन्त छोटी चींटियाँ भी उन पर चढ़कर बिना ही परिश्रम के पार चली जाती
हैं। इसी प्रकार मुनियों के वर्णन के सहारे मैं भी श्री रामचरित्र का वर्णन सहज ही
कर सकूँगा ।
इस प्रकार मन को बल दिखलाकर मैं श्री रघुनाथजी की सुहावनी कथा की रचना करूँगा।
व्यास आदि जो अनेकों श्रेष्ठ कवि हो गए हैं, जिन्होंने बड़े आदर से श्री हरि का सुयश
वर्णन किया है ।
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मैं उन सब (श्रेष्ठ कवियों) के चरणकमलों में
प्रणाम करता हूँ, वे मेरे
सब मनोरथों को पूरा करें। कलियुग के भी उन कवियों को मैं प्रणाम करता हूँ,
जिन्होंने श्री रघुनाथजी के गुण समूहों का वर्णन किया है ।
जो बड़े बुद्धिमान प्राकृत कवि हैं, जिन्होंने भाषा में हरि
चरित्रों का वर्णन किया है, जो ऐसे कवि पहले हो चुके हैं,
जो इस समय वर्तमान हैं और जो आगे होंगे, उन
सबको मैं सारा कपट त्यागकर प्रणाम करता हूँ।और आप सब प्रसन्न होकर यह वरदान
दीजिए कि साधु समाज में मेरी कविता का सम्मान हो, क्योंकि बुद्धिमान
लोग जिस कविता का आदर नहीं करते, मूर्ख कवि ही उसकी रचना
का व्यर्थ परिश्रम करते हैं ।
कीर्ति,
कविता और सम्पत्ति वही उत्तम है, जो गंगाजी
की तरह सबका हित करने वाली हो। श्री रामचन्द्रजी की कीर्ति तो बड़ी सुंदर है,
परन्तु मेरी कविता भद्दी है। यह असामंजस्य है । इसी की मुझे
चिन्ता है ।
परन्तु हे कवियों! आपकी कृपा से यह बात भी
मेरे लिए सुलभ हो सकती है। रेशम की सिलाई टाट पर भी सुहावनी लगती है ।
चतुर पुरुष उसी कविता का आदर करते हैं, जो सरल हो और जिसमें निर्मल
चरित्र का वर्णन हो तथा जिसे सुनकर शत्रु भी स्वाभाविक बैर को भूलकर सराहना करने
लगें ।
ऐसी कविता बिना निर्मल बुद्धि के होती नहीं
और मेरी बुद्धि का बल बहुत ही थोड़ा है,
इसलिए बार-बार निहोरा करता हूँ कि हे कवियों! आप कृपा करें,
जिससे मैं हरि यश का वर्णन कर सकूँ ।
कवि और पण्डितगण! आप जो रामचरित्र रूपी
मानसरोवर के सुंदर हंस हैं,
मुझ बालक की विनती सुनकर और सुंदर रुचि देखकर मुझ पर कृपा करें ।
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दोहा
:
*अति अपार जे सरित बर जौं
नृप सेतु कराहिं।
चढ़ि पिपीलिकउ परम लघु बिनु श्रम पारहि जाहिं॥13॥
चढ़ि पिपीलिकउ परम लघु बिनु श्रम पारहि जाहिं॥13॥
* चरन कमल
बंदउँ तिन्ह केरे। पुरवहुँ सकल मनोरथ मेरे॥
कलि के कबिन्ह करउँ परनामा। जिन्ह बरने रघुपति गुन ग्रामा॥2॥
कलि के कबिन्ह करउँ परनामा। जिन्ह बरने रघुपति गुन ग्रामा॥2॥
* जे
प्राकृत कबि परम सयाने। भाषाँ जिन्ह हरि चरित बखाने॥
भए जे अहहिं जे होइहहिं आगें। प्रनवउँ सबहि कपट सब त्यागें॥3॥
भए जे अहहिं जे होइहहिं आगें। प्रनवउँ सबहि कपट सब त्यागें॥3॥
* होहु
प्रसन्न देहु बरदानू। साधु समाज भनिति सनमानू॥
जो प्रबंध बुध नहिं आदरहीं। सो श्रम बादि बाल कबि करहीं॥4॥
जो प्रबंध बुध नहिं आदरहीं। सो श्रम बादि बाल कबि करहीं॥4॥
* कीरति
भनिति भूति भलि सोई। सुरसरि सम सब कहँ हित होई॥
राम सुकीरति भनिति भदेसा। असमंजस अस मोहि अँदेसा॥5॥
राम सुकीरति भनिति भदेसा। असमंजस अस मोहि अँदेसा॥5॥
* तुम्हरी
कृपाँ सुलभ सोउ मोरे। सिअनि सुहावनि टाट पटोरे॥6॥
दोहा
:
* सरल कबित
कीरति बिमल सोइ आदरहिं सुजान।
सहज बयर बिसराइ रिपु जो सुनि करहिं बखान॥14 क॥
सहज बयर बिसराइ रिपु जो सुनि करहिं बखान॥14 क॥
सो
न होई बिनु बिमल मति मोहि मति बल अति थोर।
करहु कृपा हरि जस कहउँ पुनि पुनि करउँ निहोर॥14 ख॥
करहु कृपा हरि जस कहउँ पुनि पुनि करउँ निहोर॥14 ख॥
* कबि कोबिद रघुबर चरित मानस मंजु मराल।
बालबिनय सुनि सुरुचि लखि मो पर होहु कृपाल॥14 ग॥
बालबिनय सुनि सुरुचि लखि मो पर होहु कृपाल॥14 ग॥
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