श्रीरामचरितमानस
से ...बालकांड
प्रसंग : कामदेव का भस्म हो जाना
रति को वरदान
कामदेव अपनी सेना समेत करोड़ों प्रकार
की सब कलाएँ (उपाए) करके हार गया, पर शिवजी की अचल समाधि न डिगी। तब कामदेव क्रोधित हो उठा
।
आम के वृक्ष की एक सुंदर डाली देखकर मन
में क्रोध से भरा हुआ कामदेव उस पर चढ़ गया। उसने पुष्प धनुष पर अपने पाँचों बाण
चढ़ाए और अत्यन्त क्रोध से लक्ष्य की ओर ताककर उन्हें कान तक तान लिया ।
कामदेव ने तीक्ष्ण पाँच बाण छोड़े, जो शिवजी के हृदय में लगे। तब उनकी समाधि
टूट गई और वे जाग गए। शिवजी के मन में बहुत क्षोभ हुआ। उन्होंने आँखें खोलकर सब
ओर देखा ।
जब आम के पत्तों में छिपे हुए कामदेव
को देखा तो उन्हें बड़ा क्रोध हुआ, जिससे तीनों लोक काँप उठे। तब शिवजी ने तीसरा नेत्र खोला, उनको देखते ही कामदेव जलकर भस्म हो गया
।
जगत में बड़ा हाहाकर मच गया। देवता डर
गए, दैत्य सुखी हुए। भोगी लोग कामसुख को
याद करके चिन्ता करने लगे और साधक योगी निष्कंटक हो गए ।
योगी निष्कंटक हो गए, कामदेव की स्त्री रति अपने पति की यह
दशा सुनते ही मूर्च्छित हो गई। रोती-चिल्लाती और भाँति-भाँति से करुणा करती हुई
वह शिवजी के पास गई। अत्यन्त प्रेम के साथ अनेकों प्रकार से विनती करके हाथ
जोड़कर सामने खड़ी हो गई। शीघ्र प्रसन्न होने वाले कृपालु शिवजी अबला को देखकर
उसको सान्त्वना देने वाले वचन बोले।
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हे रति! अब से तेरे स्वामी
का नाम अनंग होगा। वह बिना ही शरीर के सबको व्यापेगा। अब तू अपने पति से मिलने की
बात सुन ।
* सकल
कला करि कोटि बिधि हारेउ सेन समेत।
चली न अचल समाधि सिव कोपेउ हृदयनिकेत॥86॥
चौपाई
:
* देखि
रसाल बिटप बर साखा। तेहि पर चढ़ेउ मदनु मन माखा॥
सुमन चाप निज सर संधाने। अति रिस ताकि श्रवन लगि ताने॥1॥
* छाड़े
बिषम बिसिख उर लागे। छूटि समाधि संभु तब जागे॥
भयउ ईस मन छोभु बिसेषी। नयन उघारि सकल दिसि देखी॥2॥
* सौरभ
पल्लव मदनु बिलोका। भयउ कोपु कंपेउ त्रैलोका॥
तब सिवँ तीसर नयन उघारा। चितवन कामु भयउ जरि छारा॥3॥
* हाहाकार
भयउ जग भारी। डरपे सुर भए असुर सुखारी॥
समुझि कामसुख सोचहिं भोगी। भए अकंटक साधक जोगी॥4॥
छंद
:
* जोगी
अकंटक भए पति गति सुनत रति मुरुछित भई।
रोदति बदति बहु भाँति करुना करति संकर पहिं गई॥ अति प्रेम करि बिनती बिबिध बिधि जोरि कर सन्मुख रही। प्रभु आसुतोष कृपाल सिव अबला निरखि बोले सही॥ |
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दोहा
:
* अब तें
रति तव नाथ कर होइहि नामु अनंगु।
बिनु बपु ब्यापिहि सबहि पुनि सुनु निज मिलन प्रसंगु॥87॥
बिनु बपु ब्यापिहि सबहि पुनि सुनु निज मिलन प्रसंगु॥87॥
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