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श्रीरामचरितमानस से ... बालकांड
प्रसंग: रामरूप से जीवमात्र की वंदना
तुलसीदास जी
कहते हैं कि मैं
जगत में जितने
जड़ और चेतन जीव हैं, सबको राममय जानकर उन सबके चरणकमलों की सदा दोनों हाथ जोड़कर
वन्दना करता हूँ ।
देवता, दैत्य, मनुष्य, नाग, पक्षी, प्रेत, पितर, गंधर्व, किन्नर और निशाचर सबको मैं प्रणाम करता हूँ। अब सब मुझ
पर कृपा कीजिए ।
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चौरासी लाख योनियों में चार प्रकार
के (स्वेदज, अण्डज, उद्भिज्ज, जरायुज) जीव जल, पृथ्वी और आकाश में रहते हैं, उन सबसे भरे हुए इस सारे जगत को श्री
सीताराममय जानकर मैं दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ ।
रामरूप से जीवमात्र की वंदना :
* जड़ चेतन जग जीव जत सकल राममय जानि।
बंदउँ सब के पद कमल सदा जोरि जुग पानि॥7(ग)॥
* देव दनुज नर नाग खग प्रेत पितर गंधर्ब।
बंदउँ किंनर रजनिचर कृपा करहु अब सर्ब॥7 (घ)
चौपाई :
* आकर चारि लाख चौरासी। जाति जीव जल थल नभ बासी॥
सीय राममय सब जग जानी। करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी॥1॥
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