श्रीरामचरितमानस
से ... बालकांड
प्रसंग : मानस निर्माण की तिथि
तुलसीदासजी कहते हैं कि
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अब मैं आदरपूर्वक श्री शिवजी को सिर नवाकर श्री
रामचन्द्रजी के गुणों की निर्मल कथा कहता हूँ। श्री हरि के चरणों पर सिर रखकर
संवत् 1631 में इस
कथा का आरंभ करता हूँ ।
चैत्र मास की नवमी तिथि मंगलवार को श्री अयोध्याजी में यह
चरित्र प्रकाशित हुआ। जिस दिन श्री रामजी का जन्म होता है, वेद कहते हैं कि उस दिन
सारे तीर्थ श्री अयोध्याजी में चले आते हैं ।
असुर-नाग, पक्षी, मनुष्य, मुनि और देवता सब अयोध्याजी में आकर श्री रघुनाथजी की
सेवा करते हैं। बुद्धिमान लोग जन्म का महोत्सव मनाते हैं और श्री रामजी की सुंदर
कीर्ति का गान करते हैं ।
सज्जनों के बहुत से समूह उस दिन श्री सरयूजी के पवित्र जल
में स्नान करते हैं और हृदय में सुंदर श्याम शरीर श्री रघुनाथजी का ध्यान करके
उनके नाम का जप करते हैं ।
वेद-पुराण कहते हैं कि श्री सरयूजी का दर्शन, स्पर्श, स्नान और जलपान पापों को
हरता है। यह नदी बड़ी ही पवित्र है, इसकी महिमा अनन्त है, जिसे विमल बुद्धि वाली सरस्वतीजी भी नहीं कह सकतीं ।
यह शोभायमान अयोध्यापुरी श्री रामचन्द्रजी के परमधाम की
देने वाली है, सब
लोकों में प्रसिद्ध है और अत्यन्त पवित्र है। जगत में (अण्डज, स्वेदज, उद्भिज्ज और जरायुज) चार प्रकार
के अनन्त जीव हैं, इनमें
से जो कोई भी अयोध्याजी में शरीर छोड़ते हैं, वे फिर संसार में नहीं आते, जन्म-मृत्यु के चक्कर से छूटकर भगवान के परमधाम में
निवास करते हैं ।
इस अयोध्यापुरी को सब प्रकार से मनोहर, सब सिद्धियों की देने वाली
और कल्याण की खान समझकर मैंने इस निर्मल कथा का आरंभ किया, जिसके सुनने से काम, मद और दम्भ नष्ट हो जाते
हैं ।
इसका नाम रामचरित मानस है, जिसके कानों से सुनते ही शांति मिलती है। मन रूपी हाथी
विषय रूपी दावानल में जल रहा है, वह यदि इस रामचरित मानस रूपी सरोवर में आ पड़े तो सुखी हो
जाए ।
यह रामचरित मानस मुनियों का प्रिय है, इस सुहावने और पवित्र मानस
की शिवजी ने रचना की। यह तीनों प्रकार के दोषों, दुःखों और दरिद्रता को तथा कलियुग की कुचालों और सब पापों
का नाश करने वाला है ।
श्री महादेवजी ने इसको रचकर अपने मन में रखा था और सुअवसर
पाकर पार्वतीजी से कहा। इसी से शिवजी ने इसको अपने हृदय में देखकर और प्रसन्न
होकर इसका सुंदर 'रामचरित
मानस' नाम रखा
।
मैं उसी सुख देने वाली सुहावनी रामकथा को कहता हूँ, हे सज्जनों! आदरपूर्वक मन
लगाकर इसे सुनिए ।
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गुरुवार, 15 अक्टूबर 2015
35-34 : .बालकांड : मानस निर्माण की तिथि
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