श्रीरामचरितमानस से ...
बालकांड
प्रसंग :गोस्वामी तुलसीदास द्वारा वंदना :
श्री हनुमान्जी, राजा सुग्रीवजी, राजा जाम्बवानजी, श्री रामजी के चरणों के उपासक,
शुकदेवजी, सनकादि, नारदमुनि, श्री जानकीजी,एवं भगवान् श्री रघुनाथजी की ।
तुलसीदास जी कहते हैं कि
अब
मैं पवनकुमार
श्री हनुमान्जी को प्रणाम करता हूँ,
जो दुष्ट रूपी वन को
भस्म करने के लिए अग्निरूप हैं, जो ज्ञान की घनमूर्ति हैं और जिनके हृदय रूपी
भवन में धनुष-बाण धारण किए श्री रामजी निवास करते हैं ।
वानरों के राजा
सुग्रीवजी, रीछों के राजा जाम्बवानजी, राक्षसों के राजा
विभीषणजी और अंगदजी आदि जितना वानरों का समाज है, सबके सुंदर चरणों की
मैं वदना करता हूँ, जिन्होंने अधम (पशु और राक्षस आदि) शरीर में
भी श्री रामचन्द्रजी को प्राप्त कर लिया ।
पशु, पक्षी, देवता, मनुष्य, असुर समेत
जितने श्री रामजी के चरणों के उपासक हैं, मैं उन सबके चरणकमलों
की वंदना करता हूँ, जो श्री रामजी के निष्काम सेवक हैं ।
शुकदेवजी, सनकादि, नारदमुनि आदि
जितने भक्त और परम ज्ञानी श्रेष्ठ मुनि हैं, मैं धरती पर सिर टेककर
उन सबको प्रणाम करता हूँ, हे मुनीश्वरों! आप सब मुझको अपना दास जानकर
कृपा कीजिए ।
राजा जनक की
पुत्री, जगत की माता और करुणा निधान श्री रामचन्द्रजी की प्रियतमा
श्री जानकीजी के दोनों चरण कमलों को मैं मनाता हूँ, जिनकी कृपा से
निर्मल बुद्धि पाऊँ ।
फिर मैं मन, वचन और कर्म से
कमलनयन, धनुष-बाणधारी,
भक्तों की विपत्ति का
नाश करने और उन्हें सुख देने वाले भगवान् श्री रघुनाथजी के सर्व समर्थ चरण
कमलों की वन्दना करता हूँ ।
जो वाणी और
उसके अर्थ तथा जल और जल की लहर के समान कहने में अलग-अलग हैं, परन्तु वास्तव
में अभिन्न (एक) हैं, उन श्री सीतारामजी के चरणों की मैं वंदना
करता हूँ, जिन्हें दीन-दुःखी बहुत ही प्रिय हैं ।
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गुरुवार, 15 अक्टूबर 2015
17-18: बालकांड : गोस्वामी तुलसीदास : वंदना
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