श्रीरामचरितमानस से ...
बालकांड
प्रसंग : श्री राम कथा की महिमा
तुलसीदासजी
कहते हैं कि रामकथा मंदाकिनी नदी है, सुंदर (निर्मल)
चित्त चित्रकूट है और सुंदर स्नेह ही वन है, जिसमें श्री
सीतारामजी विहार करते हैं .
श्री
रामचन्द्रजी का चरित्र सुंदर चिन्तामणि है और संतों की सुबुद्धि रूपी स्त्री का
सुंदर श्रंगार है। श्री रामचन्द्रजी के गुण-समूह जगत् का कल्याण करने वाले और
मुक्ति, धन, धर्म और परमधाम
के देने वाले हैं ।
ज्ञान, वैराग्य और योग के लिए सद्गुरु हैं और संसार रूपी भयंकर रोग का नाश करने
के लिए देवताओं के वैद्य (अश्विनीकुमार) के समान हैं। ये श्री सीतारामजी के
प्रेम के उत्पन्न करने के लिए माता-पिता हैं और सम्पूर्ण व्रत, धर्म और नियमों के बीज हैं ।
पाप, संताप और शोक का नाश करने वाले तथा इस लोक और परलोक के प्रिय पालन करने
वाले हैं। विचार (ज्ञान) रूपी राजा के शूरवीर मंत्री और लोभ रूपी अपार समुद्र के
सोखने के लिए अगस्त्य मुनि हैं।
भक्तों
के मन रूपी वन में बसने वाले काम, क्रोध और कलियुग के
पाप रूपी हाथियों को मारने के लिए सिंह के बच्चे हैं। शिवजी के पूज्य और प्रियतम
अतिथि हैं और दरिद्रता रूपी दावानल के बुझाने के लिए कामना पूर्ण करने वाले मेघ
हैं ।
विषय
रूपी साँप का जहर उतारने के लिए मन्त्र और महामणि हैं। ये ललाट पर लिखे हुए
कठिनता से मिटने वाले बुरे लेखों (मंद प्रारब्ध) को मिटा देने वाले हैं। अज्ञान
रूपी अन्धकार को हरण करने के लिए सूर्य किरणों के समान और सेवक रूपी धान के पालन
करने में मेघ के समान हैं॥5॥
मनोवांछित
वस्तु देने में श्रेष्ठ कल्पवृक्ष के समान हैं और सेवा करने में हरि-हर के समान
सुलभ और सुख देने वाले हैं। सुकवि रूपी शरद् ऋतु के मन रूपी आकाश को सुशोभित
करने के लिए तारागण के समान और श्री रामजी के भक्तों के तो जीवन धन ही हैं ।
सम्पूर्ण
पुण्यों के फल महान भोगों के समान हैं। जगत का छलरहित (यथार्थ) हित करने में
साधु-संतों के समान हैं। सेवकों के मन रूपी मानसरोवर के लिए हंस के समान और
पवित्र करने में गंगाजी की तरंगमालाओं के समान हैं ।
श्री
रामजी के गुणों के समूह कुमार्ग, कुतर्क, कुचाल और कलियुग के कपट, दम्भ और पाखण्ड को जलाने
के लिए वैसे ही हैं, जैसे ईंधन के लिए प्रचण्ड अग्नि॥32
(क)॥
रामचरित्र
पूर्णिमा के चन्द्रमा की किरणों के समान सभी को सुख देने वाले हैं, परन्तु सज्जन रूपी कुमुदिनी और चकोर के चित्त के लिए तो विशेष हितकारी
और महान लाभदायक हैं ।
जिस
प्रकार श्री पार्वतीजी ने श्री शिवजी से प्रश्न किया और जिस प्रकार से श्री
शिवजी ने विस्तार से उसका उत्तर कहा, वह सब कारण मैं
विचित्र कथा की रचना करके गाकर कहूँगा ।
जिसने
यह कथा पहले न सुनी हो, वह इसे सुनकर आश्चर्य
न करे। जो ज्ञानी इस विचित्र कथा को सुनते हैं, वे यह
जानकर आश्चर्य नहीं करते कि संसार में रामकथा की कोई सीमा नहीं है (रामकथा अनंत
है)। उनके मन में ऐसा विश्वास रहता है। नाना प्रकार से श्री रामचन्द्रजी के
अवतार हुए हैं और सौ करोड़ तथा अपार रामायण हैं ।
कल्पभेद
के अनुसार श्री हरि के सुंदर चरित्रों को मुनीश्वरों ने अनेकों प्रकार से गया
है। हृदय में ऐसा विचार कर संदेह न कीजिए और आदर सहित प्रेम से इस कथा को सुनिए ।
श्री
रामचन्द्रजी अनन्त हैं, उनके गुण भी अनन्त
हैं और उनकी कथाओं का विस्तार भी असीम है। अतएव जिनके विचार निर्मल हैं, वे इस कथा को सुनकर आश्चर्य नहीं मानेंगे ।
.
* रामकथा मंदाकिनी चित्रकूट
चित चारु।
तुलसी सुभग सनेह बन सिय रघुबीर बिहारु॥31॥
चौपाई :
* रामचरित चिंतामति चारू।
संत सुमति तिय सुभग सिंगारू॥
जग मंगल गुनग्राम राम के। दानि मुकुति धन धरम धाम के॥1॥
* सदगुर ग्यान बिराग जोग के।
बिबुध बैद भव भीम रोग के॥
जननि जनक सिय राम प्रेम के। बीज सकल ब्रत धरम नेम के॥2॥
* समन पाप संताप सोक के।
प्रिय पालक परलोक लोक के॥
सचिव सुभट भूपति बिचार के। कुंभज लोभ उदधि अपार के॥3॥
* काम कोह कलिमल करिगन के।
केहरि सावक जन मन बन के॥
अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के। कामद घन दारिद दवारि के॥4॥
* मंत्र महामनि बिषय ब्याल
के। मेटत कठिन कुअंक भाल के॥
हरन मोह तम दिनकर कर से। सेवक सालि पाल जलधर से॥5॥
* अभिमत दानि देवतरु बर से।
सेवत सुलभ सुखद हरि हर से॥
सुकबि सरद नभ मन उडगन से। रामभगत जन जीवन धन से॥6॥
* सकल सुकृत फल भूरि भोग से।
जग हित निरुपधि साधु लोग से॥
सेवक मन मानस मराल से। पावन गंग तरंग माल से॥7॥
दोहा :
* कुपथ कुतरक कुचालि कलि कपट
दंभ पाषंड।
दहन राम गुन ग्राम जिमि इंधन अनल प्रचंड॥32 क॥
* रामचरित राकेस कर सरिस
सुखद सब काहु।
सज्जन कुमुद चकोर चित हित बिसेषि बड़ लाहु॥32 ख॥
चौपाई :
* कीन्हि प्रस्न जेहि भाँति
भवानी। जेहि बिधि संकर कहा बखानी॥
सो सब हेतु कहब मैं गाई। कथा प्रबंध बिचित्र बनाई॥1॥
* जेहिं यह कथा सुनी नहिं
होई। जनि आचरजु करै सुनि सोई॥
कथा अलौकिक सुनहिं जे ग्यानी। नहिं आचरजु करहिं अस जानी॥2॥ रामकथा कै मिति जग नाहीं। असि प्रतीति तिन्ह के मन माहीं॥ नाना भाँति राम अवतारा। रामायन सत कोटि अपारा॥3॥
* कलपभेद हरिचरित सुहाए।
भाँति अनेक मुनीसन्ह गाए॥
करिअ न संसय अस उर आनी। सुनिअ कथा सादर रति मानी॥4॥ |
गुरुवार, 15 अक्टूबर 2015
31-32 :.बालकांड : श्री राम कथा की महिमा
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