श्रीरामचरितमानस से ...
बालकांड
प्रसंग
: . कवि वाल्मीकि, वेद, ब्रह्मा, देवता, आदि
की वंदना
गोस्वामी
तुलसीदास जी कहते हैं कि
मैं उन वाल्मीकि मुनि के चरण कमलों की वंदना करता हूँ, जिन्होंने रामायण की रचना
की है ।
मैं चारों वेदों की वन्दना करता हूँ, जो संसार समुद्र के पार होने
के लिए जहाज के समान हैं तथा जिन्हें श्री रघुनाथजी का निर्मल यश वर्णन करते
स्वप्न में भी थकावट नहीं होता ।
मैं ब्रह्माजी के चरण रज की वन्दना करता हूँ, जिन्होंने भवसागर बनाया है, जहाँ से एक ओर संतरूपी अमृत, चन्द्रमा और कामधेनु निकले
और दूसरी ओर दुष्ट मनुष्य रूपी विष और मदिरा उत्पन्न हुए ।
देवता, ब्राह्मण, पंडित, ग्रह- इन सबके चरणों की वंदना करके हाथ जोड़कर कहता हूँ कि
आप प्रसन्न होकर मेरे सारे सुंदर मनोरथों को पूरा करें ।
सोरठा :
* बंदउँ मुनि पद कंजु रामायन जेहिं निरमयउ।
सखर सुकोमल मंजु दोष रहित दूषन सहित॥14 घ॥
सखर सुकोमल मंजु दोष रहित दूषन सहित॥14 घ॥
* बंदउँ चारिउ बेद भव बारिधि बोहित सरिस।
जिन्हहि न सपनेहुँ खेद बरनत रघुबर बिसद जसु॥14 ङ॥
जिन्हहि न सपनेहुँ खेद बरनत रघुबर बिसद जसु॥14 ङ॥
* बंदउँ बिधि पद रेनु भव सागर जेहिं कीन्ह जहँ।
संत सुधा ससि धेनु प्रगटे खल बिष बारुनी॥14च॥
संत सुधा ससि धेनु प्रगटे खल बिष बारुनी॥14च॥
दोहा :
* बिबुध बिप्र बुध ग्रह चरन बंदि कहउँ कर जोरि।
होइ प्रसन्न पुरवहु सकल मंजु मनोरथ मोरि॥14 छ॥
होइ प्रसन्न पुरवहु सकल मंजु मनोरथ मोरि॥14 छ॥
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