श्रीराम
चरितमानस से ... बालकांड
श्रीनाम
वंदना
श्री
रामचंद्र की कथा –रचना प्रारम्भ करने के पूर्व माता सरस्वती जी और गणेश जी ;श्री
पार्वती जी और शंकर जी , शंकर
स्वरूप
गुरु , कवीश्वर श्री वाल्मीकिजी और कपीश्वर
श्री हनुमानजी, श्री सीता जी
तथा राम कहलाने वाले
श्री हरि की
वंदना करते हैं ।
.
.
.
तत्पश्चात तुलसीदास जीअनेक पुराण, वेद और शास्त्र से सम्मत तथा जो रामायण में वर्णित
है और कुछ अन्यत्र से भी उपलब्ध श्री रघुनाथजी की कथा को अपने अन्तःकरण के सुख के लिए अत्यन्त मनोहर
भाषा में रचना करता है । पुन: वे गणेश जी की कृपा के लिए
वंदना करते हैं जिनके
स्मरण करने से सब कार्य सिद्ध होते
हैं, जो गणों के स्वामी और सुंदर हाथी के
मुख वाले हैं, वे ही बुद्धि के राशि और शुभ गुणों
के धाम हैं । वे
जिनकी कृपा से गूँगा बहुत सुंदर
बोलने वाला हो जाता है और लँगड़ा-लूला दुर्गम पहाड़ पर चढ़ जाता है, वे कलियुग के सब पापों को जला डालने
वाले भगवान मुझ पर द्रवित हों .
वे नारायण मेरे हृदय में निवास करें ,
.जो नीलकमल के समान श्यामवर्ण हैं, पूर्ण खिले हुए लाल कमल के समान
जिनके नेत्र हैं और जो सदा क्षीरसागर पर शयन करते हैं और वे कामदेव का मर्दन करने वाले शंकरजी
.जिनका कुंद के
पुष्प और चन्द्रमा के समान गौर शरीर है, जो पार्वतीजी के प्रियतम और दया के धाम हैं और जिनका
दीनों पर स्नेह है, मुझ पर कृपा करें ।
मैं उन गुरु महाराज के चरणकमल की वंदना करता
हूँ, जो
कृपा के समुद्र और नर रूप में श्री हरि ही हैं और जिनके वचन महामोह रूपी घने
अन्धकार का नाश करने के लिए सूर्य किरणों के समूह हैं ।
* नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद्
रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि।
स्वान्तःसुखाय तुलसी रघुनाथगाथा
भाषानिबन्धमतिमंजुलमातनोति॥7॥
सोरठा :
* जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन।
करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन॥1॥
* मूक होइ बाचाल पंगु चढ़इ गिरिबर गहन।
जासु कृपाँ सो दयाल द्रवउ सकल कलिमल दहन॥2॥
* नील सरोरुह स्याम तरुन अरुन बारिज नयन।
करउ सो मम उर धाम सदा छीरसागर सयन॥3॥
* कुंद इंदु सम देह उमा रमन करुना अयन।
जाहि दीन पर नेह करउ कृपा मर्दन मयन॥4॥
* बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप
हरि।
महामोह तम
पुंज जासु बचन रबि कर निकर॥5॥
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श्रीराम
चरितमानस से ... बालकांड
श्रीनाम
वंदना
श्री
रामचंद्र की कथा –रचना प्रारम्भ करने के पूर्व माता सरस्वती जी और गणेश जी ;श्री
पार्वती जी और शंकर जी , शंकर
स्वरूप
गुरु , कवीश्वर श्री वाल्मीकिजी और कपीश्वर
श्री हनुमानजी, श्री सीता जी
तथा राम कहलाने वाले
श्री हरि की
वंदना करते हैं ।
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तत्पश्चात तुलसीदास जीअनेक पुराण, वेद और शास्त्र से सम्मत तथा जो रामायण में वर्णित
है और कुछ अन्यत्र से भी उपलब्ध श्री रघुनाथजी की कथा को अपने अन्तःकरण के सुख के लिए अत्यन्त मनोहर
भाषा में रचना करता है । पुन: वे गणेश जी की कृपा के लिए
वंदना करते हैं जिनके
स्मरण करने से सब कार्य सिद्ध होते
हैं, जो गणों के स्वामी और सुंदर हाथी के
मुख वाले हैं, वे ही बुद्धि के राशि और शुभ गुणों
के धाम हैं । वे
जिनकी कृपा से गूँगा बहुत सुंदर
बोलने वाला हो जाता है और लँगड़ा-लूला दुर्गम पहाड़ पर चढ़ जाता है, वे कलियुग के सब पापों को जला डालने
वाले भगवान मुझ पर द्रवित हों .
वे नारायण मेरे हृदय में निवास करें ,
.जो नीलकमल के समान श्यामवर्ण हैं, पूर्ण खिले हुए लाल कमल के समान
जिनके नेत्र हैं और जो सदा क्षीरसागर पर शयन करते हैं और वे कामदेव का मर्दन करने वाले शंकरजी
.जिनका कुंद के
पुष्प और चन्द्रमा के समान गौर शरीर है, जो पार्वतीजी के प्रियतम और दया के धाम हैं और जिनका
दीनों पर स्नेह है, मुझ पर कृपा करें ।
मैं उन गुरु महाराज के चरणकमल की वंदना करता
हूँ, जो
कृपा के समुद्र और नर रूप में श्री हरि ही हैं और जिनके वचन महामोह रूपी घने
अन्धकार का नाश करने के लिए सूर्य किरणों के समूह हैं ।
* नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद्
रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि।
स्वान्तःसुखाय तुलसी रघुनाथगाथा
भाषानिबन्धमतिमंजुलमातनोति॥7॥
सोरठा :
* जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन।
करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन॥1॥
* मूक होइ बाचाल पंगु चढ़इ गिरिबर गहन।
जासु कृपाँ सो दयाल द्रवउ सकल कलिमल दहन॥2॥
* नील सरोरुह स्याम तरुन अरुन बारिज नयन।
करउ सो मम उर धाम सदा छीरसागर सयन॥3॥
* कुंद इंदु सम देह उमा रमन करुना अयन।
जाहि दीन पर नेह करउ कृपा मर्दन मयन॥4॥
* बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु
नररूप हरि।
महामोह तम
पुंज जासु बचन रबि कर निकर॥5॥
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Jisne bhi yeh site banai hai dhanya hai wah purush or dhanya hai uska jiwan jisne hamko katha padne ka sobhagya diya 7771057200
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