श्रीरामचरितमानस से ...बालकांड
प्रसंग :
शिवजी को देखकर मैना का विलाप
गोस्वमी तुलसीदास जी
कहते हैं कि
जिस नगर में स्वयं जगदम्बा ने अवतार लिया, क्या उसका वर्णन हो
सकता है? वहाँ
ऋद्धि, सिद्धि, सम्पत्ति और सुख
नित-नए बढ़ते जाते हैं॥94॥
बारात को नगर के निकट आई सुनकर नगर में चहल-पहल मच गई, जिससे उसकी शोभा बढ़
गई। अगवानी करने वाले लोग बनाव-श्रृंगार करके तथा नाना प्रकार की सवारियों को
सजाकर आदर सहित बारात को लेने चले ।
देवताओं के समाज को देखकर सब मन में प्रसन्न हुए और विष्णु
भगवान को देखकर तो बहुत ही सुखी हुए,
किन्तु जब शिवजी के दल को देखने लगे तब
तो उनके सब वाहन डरकर भाग चले ।
कुछ बड़ी उम्र के समझदार लोग धीरज धरकर वहाँ डटे रहे। लड़के तो
सब अपने प्राण लेकर भागे। घर पहुँचने पर जब माता-पिता पूछते हैं, तब वे भय से काँपते
हुए शरीर से ऐसा वचन कहते हैं ।
क्या कहें, कोई बात कही नहीं जाती। यह बारात है या यमराज की सेना? दूल्हा पागल है और
बैल पर सवार है। साँप, कपाल
और राख ही उसके गहने हैं
दूल्हे के शरीर पर राख लगी है,
साँप और कपाल के गहने हैं, वह नंगा, जटाधारी और भयंकर है।
उसके साथ भयानक मुखवाले भूत, प्रेत, पिशाच, योगिनियाँ और राक्षस
हैं, जो
बारात को देखकर जीता बचेगा, सचमुच
उसके बड़े ही पुण्य हैं और वही पार्वती का विवाह देखेगा। लड़कों ने घर-घर यही बात
कही।
महेश्वर जी का समाज समझकर सब लड़कों के माता-पिता मुस्कुराते हैं।
उन्होंने बहुत तरह से लड़कों को समझाया कि निडर हो जाओ, डर की कोई बात नहीं
है ।
अगवान लोग बारात को लिवा लाए,
उन्होंने सबको सुंदर जनवासे ठहरने को
दिए। मैना (पार्वतीजी की माता) ने शुभ आरती सजाई और उनके साथ की स्त्रियाँ उत्तम
मंगलगीत गाने लगीं ।
सुंदर हाथों में सोने का थाल शोभित है, इस प्रकार मैना हर्ष
के साथ शिवजी का परछन करने चलीं। जब महादेवजी को भयानक वेष मेंदेखा तब तो
स्त्रियों के मन में बड़ा भारी भय उत्पन्न हो गया।
बहुत ही डर के मारे भागकर वे घर में घुस गईं और शिवजी जहाँ
जनवासा था, वहाँ
चले गए। मैना के हृदय में बड़ा दुःख हुआ,
उन्होंने पार्वतीजी को अपने पास बुला
लिया ।
और अत्यन्त स्नेह से गोद में बैठाकर
अपने नीलकमल के समान नेत्रों में आँसू भरकर कहा- जिस विधाता ने तुमको ऐसा सुंदर
रूप दिया, उस
मूर्ख ने तुम्हारे दूल्हे को बावला कैसे बना
जिस विधाता ने तुमको सुंदरता दी,
उसने तुम्हारे लिए वर बावला कैसे बनाया? जो फल कल्पवृक्ष में
लगना चाहिए, वह
जबर्दस्ती बबूल में लग रहा है। मैं तुम्हें लेकर पहाड़ से गिर पड़ूँगी, आग में जल जाऊँगी या
समुद्र में कूद पड़ूँगी। चाहे घर उजड़ जाए और संसार भर में अपकीर्ति फैल जाए, पर जीते जी मैं इस
बावले वर से तुम्हारा विवाह न करूँगी।
हिमाचल की स्त्री (मैना) को दुःखी देखकर सारी स्त्रियाँ
व्याकुल हो गईं। मैना अपनी कन्या के स्नेह को याद करके रोती थीं।
दोहा :
* जगदंबा जहँ अवतरी सो पुरु बरनि कि जाइ।
रिद्धि सिद्धि संपत्ति सुख नित नूतन अधिकाइ॥94॥
रिद्धि सिद्धि संपत्ति सुख नित नूतन अधिकाइ॥94॥
चौपाई :
* नगर निकट बरात सुनि आई। पुर खरभरु सोभा अधिकाई॥
करि बनाव सजि बाहन नाना। चले लेन सादर अगवाना॥1॥
करि बनाव सजि बाहन नाना। चले लेन सादर अगवाना॥1॥
* हियँ हरषे सुर सेन निहारी। हरिहि देखि अति भए
सुखारी॥
सिव समाज जब देखन लागे। बिडरि चले बाहन सब भागे॥2॥
सिव समाज जब देखन लागे। बिडरि चले बाहन सब भागे॥2॥
* धरि धीरजु तहँ रहे सयाने। बालक सब लै जीव पराने॥
गएँ भवन पूछहिं पितु माता। कहहिं बचन भय कंपित गाता॥3॥
गएँ भवन पूछहिं पितु माता। कहहिं बचन भय कंपित गाता॥3॥
* कहिअ काह कहि जाइ न बाता। जम कर धार किधौं
बरिआता॥
बरु बौराह बसहँ असवारा। ब्याल कपाल बिभूषन छारा॥4॥
बरु बौराह बसहँ असवारा। ब्याल कपाल बिभूषन छारा॥4॥
छन्द :
* तन छार ब्याल कपाल भूषन नगन जटिल भयंकरा।
सँग भूत प्रेत पिसाच जोगिनि बिकट मुख रजनीचरा॥
जो जिअत रहिहि बरात देखत पुन्य बड़ तेहि कर सही।
देखिहि सो उमा बिबाहु घर घर बात असि लरिकन्ह कही॥
सँग भूत प्रेत पिसाच जोगिनि बिकट मुख रजनीचरा॥
जो जिअत रहिहि बरात देखत पुन्य बड़ तेहि कर सही।
देखिहि सो उमा बिबाहु घर घर बात असि लरिकन्ह कही॥
दोहा :
* समुझि महेस समाज सब जननि जनक मुसुकाहिं।
बाल बुझाए बिबिध बिधि निडर होहु डरु नाहिं॥95॥
बाल बुझाए बिबिध बिधि निडर होहु डरु नाहिं॥95॥
चौपाई :
* लै अगवान बरातहि आए। दिए सबहि जनवास सुहाए॥
मैनाँ सुभ आरती सँवारी। संग सुमंगल गावहिं नारी॥1॥
मैनाँ सुभ आरती सँवारी। संग सुमंगल गावहिं नारी॥1॥
* कंचन थार सोह बर पानी। परिछन चली हरहि हरषा
बिकट बेष रुद्रहि जब
देखा। अबलन्ह उर भय भयउ बिसेषा॥2॥
* भागि भवन पैठीं अति त्रासा। गए महेसु जहाँ
जनवासा॥
मैना हृदयँ भयउ दुखु भारी। लीन्ही बोली गिरीसकुमारी॥3॥
मैना हृदयँ भयउ दुखु भारी। लीन्ही बोली गिरीसकुमारी॥3॥
* अधिक सनेहँ गोद बैठारी। स्याम सरोज नयन भरे
बारी॥
जेहिं बिधि तुम्हहि रूपु अस दीन्हा। तेहिं जड़ बरु बाउर कस कीन्हा॥4॥
जेहिं बिधि तुम्हहि रूपु अस दीन्हा। तेहिं जड़ बरु बाउर कस कीन्हा॥4॥
छन्द :
* कस कीन्ह बरु बौराह बिधि जेहिं तुम्हहि सुंदरता
दई।
जो फलु चहिअ सुरतरुहिं सो बरबस बबूरहिं लागई॥
तुम्ह सहित गिरि तें गिरौं पावक जरौं जलनिधि महुँ परौं।
घरु जाउ अपजसु होउ जग जीवत बिबाहु न हौं करौं॥
जो फलु चहिअ सुरतरुहिं सो बरबस बबूरहिं लागई॥
तुम्ह सहित गिरि तें गिरौं पावक जरौं जलनिधि महुँ परौं।
घरु जाउ अपजसु होउ जग जीवत बिबाहु न हौं करौं॥
दोहा :
* भईं बिकल अबला सकल दुखित देखि गिरिनारि।
करि बिलापु रोदति बदति सुता सनेहु सँभारि॥96॥।
करि बिलापु रोदति बदति सुता सनेहु सँभारि॥96॥।
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