प्रसंग
: विवाह के बाद विदाई ... शिव जी चले पार्वती के साथ कैलाश
मुनियों की आज्ञा से शिवजी और पार्वतीजी ने गणेशजी का पूजन किया। मन
में देवताओं को अनादि समझकर कोई इस बात को सुनकर शंका न करे (कि गणेशजी तो
शिव-पार्वती की संतान हैं, अभी विवाह से पूर्व ही वे कहाँ से आ गए?) ।
वेदों में विवाह की जैसी रीति कही गई है, महामुनियों ने वह
सभी रीति करवाई। पर्वतराज हिमाचल ने हाथ में कुश लेकर तथा कन्या का हाथ पकड़कर
उन्हें भवानी (शिवपत्नी) जानकर शिवजी को समर्पण किया ।
जब महेश्वर (शिवजी) ने पार्वती का
पाणिग्रहण किया, तब (इन्द्रादि) सब देवता हृदय में बड़े ही हर्षित हुए।
श्रेष्ठ मुनिगण वेदमंत्रों का उच्चारण करने लगे और देवगण शिवजी का जय-जयकार करने
लगे ।
अनेकों प्रकार के बाजे बजने लगे। आकाश
से नाना प्रकार के फूलों की वर्षा हुई। शिव-पार्वती का विवाह हो गया। सारे
ब्राह्माण्ड में आनंद भर गया ।
दासी,
दास,
रथ,
घोड़े,
हाथी,
गायें,
वस्त्र और मणि आदि अनेक प्रकार की
चीजें, अन्न तथा सोने के बर्तन गाड़ियों में लदवाकर दहेज में दिए, जिनका वर्णन नहीं
हो सकता ।:बहुत प्रकार का दहेज देकर, फिर हाथ जोड़कर हिमाचल
ने कहा- हे शंकर! आप पूर्णकाम हैं,
मैं आपको क्या दे सकता हूँ? इतना कहकर वे शिवजी
के चरणकमल पकड़कर रह गए। तब कृपा के सागर शिवजी ने अपने ससुर का सभी प्रकार से
समाधान किया। फिर प्रेम से परिपूर्ण हृदय मैनाजी ने शिवजी के चरण कमल पकड़े और
कहा-
-हे नाथ! यह उमा मुझे मेरे प्राणों के समान प्यारी है। आप इसे
अपने घर की टहलनी बनाइएगा और इसके सब अपराधों को क्षमा करते रहिएगा। अब प्रसन्न
होकर मुझे यही वर दीजिए ।
शिवजी ने बहुत तरह से अपनी सास को
समझाया। तब वे शिवजी के चरणों में सिर नवाकर घर गईं। फिर माता ने पार्वती को
बुला लिया और गोद में बिठाकर यह सुंदर सीख दी-
हे पार्वती! तू सदाशिवजी के चरणों की पूजा करना, नारियों का यही
धर्म है। उनके लिए पति ही देवता है और कोई देवता नहीं है। इस प्रकार की बातें
कहते-कहते उनकी आँखों में आँसू भर आए और उन्होंने कन्या को छाती से चिपटा लिया ।
फिर बोलीं कि विधाता ने जगत में
स्त्री जाति को क्यों पैदा किया?
पराधीन को सपने में भी सुख नहीं
मिलता। यों कहती हुई माता प्रेम में अत्यन्त विकल हो गईं, परन्तु कुसमय जानकर
(दुःख करने का अवसर न जानकर) उन्होंने धीरज धरा ।
मैना बार-बार मिलती हैं और (पार्वती
के) चरणों को पकड़कर गिर पड़ती हैं। बड़ा ही प्रेम है, कुछ वर्णन नहीं
किया जाता। भवानी सब स्त्रियों से मिल-भेंटकर फिर अपनी माता के हृदय से जा
लिपटीं । पार्वतीजी माता से फिर मिलकर चलीं, सब किसी ने उन्हें
योग्य आशीर्वाद दिए। पार्वतीजी फिर-फिरकर माता की ओर देखती जाती थीं। तब सखियाँ
उन्हें शिवजी के पास ले गईं। महादेवजी सब याचकों को संतुष्ट कर पार्वती के साथ
घर (कैलास) को चले। सब देवता प्रसन्न होकर फूलों की वर्षा करने लगे और आकाश में
सुंदर नगाड़े बजाने लगे।
तब हिमवान् अत्यन्त प्रेम से शिवजी को पहुँचाने के लिए साथ
चले। वृषकेतु (शिवजी) ने बहुत तरह से उन्हें संतोष कराकर विदा किया ।
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गुरुवार, 29 अक्टूबर 2015
100-102 : बालकांड :शिव जी चले पार्वती के साथ कैलाश
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