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श्रीरामचरितमानस से ...
बालकांड
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प्रसंग : श्री नाम की महिमा-
· राम नाम
निर्गुण ब्रह्म से और सगुण राम से बड़ा है ।
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कलियुग में राम का नाम कल्पतरु है ।
· तुलसीदासजी कहते हैं-
· श्री रघुनाथजी ने तो शबरी, जटायु आदि उत्तम सेवकों को ही मुक्ति दी, परन्तु नाम ने अगनित दुष्टों का उद्धार किया। नाम के गुणों
की कथा वेदों में प्रसिद्ध है ।
· श्री रामजी ने सुग्रीव और विभीषण दोनों
को ही अपनी शरण में रखा, यह सब कोई जानते हैं, परन्तु नाम ने अनेक गरीबों पर कृपा की है। नाम का यह सुंदर
विरद लोक और वेद में विशेष रूप से प्रकाशित है ।
· श्री रामजी ने तो भालू और बंदरों की सेना
बटोरी और समुद्र पर पुल बाँधने के लिए थोड़ा परिश्रम नहीं किया, परन्तु नाम लेते ही संसार समुद्र सूख जाता है। सज्जनगण! मन
में विचार कीजिए कि दोनों में कौन बड़ा है ।
· श्री रामचन्द्रजी ने कुटुम्ब सहित रावण
को युद्ध में मारा, तब सीता सहित उन्होंने अपने नगर
(अयोध्या) में प्रवेश किया। राम राजा हुए, अवध उनकी राजधानी हुई, देवता और मुनि सुंदर वाणी से जिनके गुण
गाते हैं, परन्तु सेवक (भक्त) प्रेमपूर्वक नाम के
स्मरण मात्र से बिना परिश्रम मोह की प्रबल सेना को जीतकर प्रेम में मग्न हुए अपने
ही सुख में विचरते हैं, नाम के प्रसाद से उन्हें सपने में भी कोई
चिन्ता नहीं सताती ।
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इस प्रकार नाम (निर्गुण) ब्रह्म और (सगुण) राम दोनों से बड़ा है। यह वरदान
देने वालों को भी वर देने वाला है। श्री शिवजी ने अपने हृदय में यह जानकर ही सौ
करोड़ राम चरित्र में से इस 'राम' नाम को साररूप से चुनकर ग्रहण किया है ।
· नाम ही के प्रसाद से शिवजी अविनाशी हैं
और अमंगल वेष वाले होने पर भी मंगल की राशि हैं। शुकदेवजी और सनकादि सिद्ध, मुनि, योगी गण नाम के ही
प्रसाद से ब्रह्मानन्द को भोगते हैं ।
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नारदजी ने नाम के प्रताप को जाना है। हरि सारे संसार को प्यारे हैं, और श्री नारदजी हरि और हर दोनों को प्रिय हैं। नाम के जपने
से प्रभु ने कृपा की, जिससे प्रह्लाद, भक्त शिरोमणि हो गए।।
· ध्रुवजी ने ग्लानि से ,विमाता के वचनों से दुःखी होकर सकाम भाव
से, हरि नाम को जपा और उसके प्रताप से अचल अनुपम स्थान (ध्रुवलोक) प्राप्त किया।
हनुमान्जी ने पवित्र नाम का स्मरण करके श्री रामजी को अपने वश में कर रखा है ।
· नीच अजामिल, गज और गणिका (वेश्या) भी श्री हरि के नाम के प्रभाव से
मुक्त हो गए। मैं नाम की बड़ाई कहाँ तक कहूँ, राम भी नाम के गुणों को नहीं गा सकते।
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कलियुग में राम का नाम कल्पतरु (मन चाहा पदार्थ देने वाला) और कल्याण का निवास
(मुक्ति का घर) है, जिसको स्मरण करने से निकृष्ट तुलसीदास
तुलसी के समान पवित्र।हो गया ।
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सबरी गीध सुसेवकनि सुगति दीन्हि रघुनाथ।
नाम उधारे अमित खल बेद बिदित गुन गाथ॥24॥
नाम उधारे अमित खल बेद बिदित गुन गाथ॥24॥
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चौपाई :
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राम सुकंठ बिभीषन दोऊ। राखे सरन जान सबु कोऊ ॥
नाम गरीब अनेक नेवाजे। लोक बेद बर बिरिद बिराजे॥1॥
नाम गरीब अनेक नेवाजे। लोक बेद बर बिरिद बिराजे॥1॥
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राम भालु कपि कटुक बटोरा। सेतु हेतु श्रमु कीन्ह न थोरा॥
नामु लेत भवसिन्धु सुखाहीं। करहु बिचारु सुजन मन माहीं॥2॥
नामु लेत भवसिन्धु सुखाहीं। करहु बिचारु सुजन मन माहीं॥2॥
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राम सकुल रन रावनु मारा। सीय सहित निज पुर पगु धारा॥
राजा रामु अवध रजधानी। गावत गुन सुर मुनि बर बानी॥3॥
सेवक सुमिरत नामु सप्रीती। बिनु श्रम प्रबल मोह दलु जीती॥
फिरत सनेहँ मगन सुख अपनें। नाम प्रसाद सोच नहिं सपनें॥4॥
राजा रामु अवध रजधानी। गावत गुन सुर मुनि बर बानी॥3॥
सेवक सुमिरत नामु सप्रीती। बिनु श्रम प्रबल मोह दलु जीती॥
फिरत सनेहँ मगन सुख अपनें। नाम प्रसाद सोच नहिं सपनें॥4॥
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दोहा :
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ब्रह्म राम तें नामु बड़ बर दायक बर दानि।
रामचरित सत कोटि महँ लिय महेस जियँ जानि॥25॥
रामचरित सत कोटि महँ लिय महेस जियँ जानि॥25॥
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चौपाई :
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नाम प्रसाद संभु अबिनासी। साजु अमंगल मंगल रासी॥
सुक सनकादि सिद्ध मुनि जोगी। नाम प्रसाद ब्रह्मसुख भोगी॥1॥
सुक सनकादि सिद्ध मुनि जोगी। नाम प्रसाद ब्रह्मसुख भोगी॥1॥
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चौपाई :
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नाम प्रसाद संभु अबिनासी। साजु
अमंगल मंगल रासी॥
सुक सनकादि सिद्ध मुनि जोगी। नाम प्रसाद ब्रह्मसुख भोगी॥1॥
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*नारद जानेउ नाम
प्रतापू। जग प्रिय हरि हरि हर प्रिय आपू॥
नामु जपत प्रभु कीन्ह प्रसादू। भगत सिरोमनि भे प्रहलादू॥2॥
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ध्रुवँ सगलानि जपेउ हरि नाऊँ। पायउ
अचल अनूपम ठाऊँ॥
सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपने बस करि राखे रामू॥3॥
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अपतु अजामिलु गजु गनिकाऊ। भए मुकुत
हरि नाम प्रभाऊ॥
कहौं कहाँ लगि नाम बड़ाई। रामु न सकहिं नाम गुन गाई॥4॥
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दोहा :
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नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु।
जो सुमिरत भयो भाँग तें तुलसी तुलसीदासु॥26॥ |
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