सोमवार, 19 अक्टूबर 2015

87 :बालकांड : रति को वरदान

श्रीरामचरितमानस से ...बालकांड

प्रसंग : रति को वरदान
 शिवजी ने कहा -हे रति! अब से तेरे स्वामी का नाम अनंग होगा। वह बिना ही शरीर के सबको व्यापेगा। अब तू अपने पति से मिलने की बात सुन ।
जब पृथ्वी के बड़े भारी भार को उतारने के लिए यदुवंश में श्री कृष्ण का अवतार होगा, तब तेरा पति उनके पुत्र प्रद्युम्न के रूप में उत्पन्न होगा। मेरा यह वचन अन्यथा नहीं होगा ।
शिवजी के वचन सुनकर रति चली गई।
ब्रह्मादि देवताओं ने ये सब समाचार सुने तो वे वैकुण्ठ को चले ।
दोहा :
* अब तें रति तव नाथ कर होइहि नामु अनंगु।
बिनु बपु ब्यापिहि सबहि पुनि सुनु निज मिलन प्रसंगु॥87
चौपाई :
* जब जदुबंस कृष्न अवतारा। होइहि हरन महा महिभारा॥
कृष्न तनय होइहि पति तोरा। बचनु अन्यथा होइ न मोरा॥1

* रति गवनी सुनि संकर बानी। कथा अपर अब कहउँ बखानी॥
देवन्ह समाचार सब पाए। ब्रह्मादिक बैकुंठ सिधाए॥2

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