गुरुवार, 28 जनवरी 2016

204-205:बालकांड: किशोरावस्था में श्री राम सहित भाइयों की लीलाएं


श्रीरामचरितमानस से ...बालकांड

प्रसंग : किशोरावस्था में श्री राम सहित भाइयों की लीलाएं

 तुलसीदास जी कहते हैं कि कोसलपुर के रहने वाले स्त्री, पुरुष, बूढ़े और बालक सभी को कृपालु श्री रामचन्द्रजी प्राणों से भी बढ़कर प्रिय लगते हैं ।
श्री रामचन्द्रजी भाइयों और इष्ट मित्रों को बुलाकर साथ ले लेते हैं और नित्य वन में जाकर शिकार खेलते हैं। मन में पवित्र समझकर मृगों को मारते हैं और प्रतिदिन लाकर दशरथजी को दिखलाते हैं । जो मृग श्री रामजी के बाण से मारे जाते थे, वे शरीर छोड़कर देवलोक को चले जाते थे। श्री रामचन्द्रजी अपने छोटे भाइयों और सखाओं के साथ भोजन करते हैं और माता-पिता की आज्ञा का पालन करते हैं । जिस प्रकार नगर के लोग सुखी हों, कृपानिधान श्री रामचन्द्रजी वही लीला करते हैं। वे मन लगाकर वेद-पुराण सुनते हैं और फिर स्वयं छोटे भाइयों को समझाकर कहते हैं ।
श्री रघुनाथजी प्रातःकाल उठकर माता-पिता और गुरु को मस्तक नवाते हैं और आज्ञा लेकर नगर का काम करते हैं। उनके चरित्र देख-देखकर राजा मन में बड़े हर्षित होते हैं ।
जो व्यापक, अकल (निरवयव), इच्छारहित, अजन्मा और निर्गुण है तथा जिनका न नाम है न रूप, वही भगवान भक्तों के लिए नाना प्रकार के अलौकिक चरित्र करते हैं ।


दोहा :
* कोसलपुर बासी नर नारि बृद्ध अरु बाल।
प्रानहु ते प्रिय लागत सब कहुँ राम कृपाल॥204

चौपाई :
* बंधु सखा सँग लेहिं बोलाई। बन मृगया नित खेलहिं जाई॥
पावन मृग मारहिं जियँ जानी। दिन प्रति नृपहि देखावहिं आनी॥1
* जे मृग राम बान के मारे। ते तनु तजि सुरलोक सिधारे॥
अनुज सखा सँग भोजन करहीं। मातु पिता अग्या अनुसरहीं॥2
* जेहि बिधि सुखी होहिं पुर लोगा। करहिं कृपानिधि सोइ संजोगा॥
बेद पुरान सुनहिं मन लाई। आपु कहहिं अनुजन्ह समुझाई॥3
* प्रातकाल उठि कै रघुनाथा। मातु पिता गुरु नावहिं माथा॥
आयसु मागि करहिं पुर काजा। देखि चरित हरषइ मन राजा॥4
दोहा :
* ब्यापक अकल अनीह अज निर्गुन नाम न रूप।
भगत हेतु नाना बिधि करत चरित्र अनूप॥205














4 टिप्‍पणियां:

  1. मान लिए की प्रभु श्री राम मृग को मार कर उनका उद्धार कर देते है परंतु मेरी एक दुविधा है आखिर तो श्री राम हिरण को मरते है उनको कष्ट देते है जबकि यह जीव हत्या है। चाहे कोई भी कारण हो उसको पीरा तो होती है ना आखिर प्रभु श्री राम निर्दोष हिरण का शिकार क्यों करते है। राक्षसों को मारना उचित है परंतु निर्दोष हिरण को मारना क्या उचित है मेरी समझ से बाहर है कृपया करके मेरी दुविधा को मिटाईए।

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    1. Kripya kar k aap duvidha me hi rahiye. Jab deh tyag uprant agar aap swarg pahuche to prabhu se swayam pooch lijiyega, aur agar mokhs na mila to fir se mrityu lok aaiye aur 84 lakh youniyo me janm aur mratyu ko apnaiye, kyu k swarg ka dwar band hai aapke liye to nischit hi aap nark lok me jayega, ab waha kuch pochiye na poochiye koi fark nhi padega.
      Isliye aap sada duvidha me rahein , prabhu aapke saat esa hi karein.
      Jai Ma Kaali.

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    2. प्रिय मित्र,
      यह टिप्पणी आपके दिमाग के ऊपर से निकल गई है।
      श्री राम भगत कभी दुविधा में नहीं रहते।
      आपके लिए स्वर्ग का द्वार खुला रहेगा क्योंकि आप बहुत दयालु हैं।
      श्री राम आपको सद भुद्धि दें
      जय सिया राम

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  2. हिरण रूपी अवस्था उसी प्रकार है,जिस प्रकार मोक्ष प्राप्ति के लिए रावण के मामा मारीच ने हिरण रूपी वेष धारण किया।हिरण को पीड़ा देना भगवान राम का उदेश्य नही केवल मोक्ष प्रदान करना उनका मुख्य लक्ष्य रहा।
    परभु की लीला परभू ही जानी
    अच्छा बुरा किया है पहचानी,सब कुछ इस जन्म में है भोगन पड़ी यही बात तुम समझो मानस जानी।

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