श्रीरामचरितमानस से ...बालकांड
प्रसंग : प्रभु
राम ने दिखाया अपना अद्भुत रूप
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तुलसीदास जी कहते हैं कि प्रेम में मग्न
कौसल्याजी रात और दिन का बीतना नहीं जानती थीं। पुत्र के स्नेहवश माता उनके
बालचरित्रों का गान किया करतीं ।
एक बार माता ने श्री रामचन्द्रजी को स्नान कराया और श्रृंगार करके
पालने पर पौढ़ा दिया। फिर अपने कुल के इष्टदेव भगवान की पूजा के लिए स्नान किया ।
पूजा करके नैवेद्य चढ़ाया और स्वयं वहाँ गईं, जहाँ रसोई बनाई
गई थी। फिर माता वहीं पूजा के स्थान में लौट आई और वहाँ आने पर पुत्र को इष्टदेव
भगवान के लिए चढ़ाए हुए नैवेद्य का भोजन करते देखा ।
माता ने भयभीत
होकर सोचा कि वह तो पालने में सोया था, यहाँ किसने लाकर
बैठा दिया, इस बात से डरकर
पुत्र के पास गई, तो वहाँ बालक को
सोया हुआ देखा। फिर (पूजा स्थान में लौटकर) देखा कि वही पुत्र वहाँ भोजन कर रहा
है। उनके हृदय में कम्प होने लगा और मन को धीरज नहीं होता । फिर वह सोचने लगी कि
यहाँ और वहाँ मैंने दो बालक देखे। यह मेरी बुद्धि का भ्रम है या और कोई विशेष
कारण है? प्रभु श्री
रामचन्द्रजी माता को घबड़ाई हुई देखकर मधुर मुस्कान से हँस दिए ।
फिर उन्होंने माता को अपना अखंड अद्भुत रूप दिखलाया, जिसके एक-एक रोम
में करोड़ों ब्रह्माण्ड लगे हुए है ।
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दोहा :
* प्रेम मगन
कौसल्या निसि दिन जात न जान।
सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान॥200॥
चौपाई :
* एक बार जननीं
अन्हवाए। करि सिंगार पलनाँ पौढ़ाए॥
निज कुल इष्टदेव भगवाना। पूजा हेतु कीन्ह अस्नाना॥1॥
* करि पूजा नैबेद्य
चढ़ावा। आपु गई जहँ पाक बनावा॥
बहुरि मातु तहवाँ चलि आई। भोजन करत देख सुत जाई॥2॥
* गै जननी सिसु
पहिं भयभीता। देखा बाल तहाँ पुनि सूता॥
बहुरि आइ देखा सुत सोई। हृदयँ कंप मन धीर न होई॥3।
* इहाँ उहाँ दुइ
बालक देखा। मतिभ्रम मोर कि आन बिसेषा॥
देखि राम जननी अकुलानी। प्रभु हँसि दीन्ह मधुर मुसुकानी॥4॥
दोहा :
* देखरावा मातहि
निज अद्भुत रूप अखंड।
रोम रोम प्रति लागे कोटि कोटि ब्रह्मंड॥201॥ |
गुरुवार, 21 जनवरी 2016
200-201:बालकांड : प्रभु राम ने दिखाया अपना अद्भुत रूप
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