श्रीरामचरितमानस से ...बालकांड
प्रसंग : श्री भगवान् का
प्राकट्य
क्योंकि श्री राम का
जन्म सुख का मूल है , इसलिए योग, लग्न, ग्रह, वार और तिथि सभी अनुकूल हो गए। जड़ और चेतन सब हर्ष से भर गए।
पवित्र चैत्र का
महीना था, नवमी तिथि थी। शुक्ल पक्ष और भगवान का प्रिय
अभिजित् मुहूर्त था। दोपहर का समय था। न बहुत सर्दी थी, न गरमी थी। वह पवित्र समय सब लोकों को शांति देने वाला था ।
शीतल, मंद और सुगंधित पवन बह रहा था। देवता हर्षित थे और संतों के मन में बड़ा
चाव था। वन फूले हुए थे, पर्वतों के समूह मणियों से जगमगा रहे थे और सारी नदियाँ
अमृत की धारा बहा रही थीं ।
जब ब्रह्माजी ने भगवान
के प्रकट होने का वह अवसर जाना तब उनके साथ सारे देवता विमान सजा-सजाकर चले। निर्मल आकाश देवताओं के समूहों से भर
गया। गंधर्वों के दल गुणों का गान करने लगे । और सुंदर अंजलियों में सजा-सजाकर
पुष्प बरसाने लगे। आकाश में घमाघम नगाड़े बजने लगे। नाग, मुनि और देवता स्तुति करने लगे और बहुत प्रकार से अपनी-अपनी सेवा भेंट
करने लगे ।
देवताओं के समूह
विनती करके अपने-अपने लोक में जा पहुँचे। समस्त लोकों को शांति देने वाले, जगदाधार प्रभु प्रकट हुए ।
दोहा :
* जोग लगन ग्रह बार तिथि सकल भए अनुकूल।
चर अरु अचर हर्षजुत राम जनम सुखमूल॥190॥
चर अरु अचर हर्षजुत राम जनम सुखमूल॥190॥
चौपाई :
* नौमी तिथि मधु मास पुनीता। सुकल पच्छ अभिजित
हरिप्रीता॥
मध्यदिवस अति सीत न घामा। पावन काल लोक बिश्रामा॥1॥
मध्यदिवस अति सीत न घामा। पावन काल लोक बिश्रामा॥1॥
* सीतल मंद सुरभि बह बाऊ। हरषित सुर संतन मन चाऊ॥
बन कुसुमित गिरिगन मनिआरा। स्रवहिं सकल सरिताऽमृतधारा॥2॥
बन कुसुमित गिरिगन मनिआरा। स्रवहिं सकल सरिताऽमृतधारा॥2॥
* सो अवसर बिरंचि जब जाना। चले सकल सुर साजि
बिमाना॥
गगन बिमल संकुल सुर जूथा। गावहिं गुन गंधर्ब बरूथा॥3॥
गगन बिमल संकुल सुर जूथा। गावहिं गुन गंधर्ब बरूथा॥3॥
* बरषहिं सुमन सुअंजुलि साजी। गहगहि गगन दुंदुभी
बाजी॥
अस्तुति करहिं नाग मुनि देवा। बहुबिधि लावहिं निज निज सेवा॥4॥
अस्तुति करहिं नाग मुनि देवा। बहुबिधि लावहिं निज निज सेवा॥4॥
दोहा :
* सुर समूह बिनती करि पहुँचे निज निज धाम।
जगनिवास प्रभु प्रगटे अखिल लोक बिश्राम॥191
जगनिवास प्रभु प्रगटे अखिल लोक बिश्राम॥191
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